राज्यसभा में उठी मांग, जिला सरकारी अस्पतालों में ‘IVF’ क्लीनिक शुरु करें सरकार

नई दिल्ली। राज्यसभा में बुधवार को विभिन्न दलों के सदस्यों ने देश में सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी से संबंधित विभिन्न क्लीनिक के नियमन और प्रक्रिया के व्यावसायिक दुरूपयोग पर लगाम लगाने के लिए कानूनी प्रावधान करने का स्वागत किया।साथ ही सदस्यों ने सरोगेसी विधेयक में नजदीकी रिश्तेदार की परिभाषा स्पष्ट कर इसमें ‘एलजीबीटीक्यू’ युगलों को शामिल करने का सुझाव दिया।राज्यसभा में सदस्यों ने जननीय प्रौद्योगिकी (विनियमन) विधेयक और सरोगेसी (विनियमन) विधेयक पर चर्चा में भाग लेकर यह बात कही।

चर्चा के दौरान विपक्ष के कई सदस्य आसन के समक्ष आकर नारेबाजी कर रहे थे।इसी दौरान भाजपा सदस्य के सी राममूर्ति ने कहा कि सरोगेसी और कृत्रिम गर्भाधान के नियमन के लिए देश में पर्याप्त कानून नहीं हैं। उन्होंने कहा कि कृत्रिम गर्भाधान के मामले में काफी धन खर्च होता है,लेकिन इसके लिए कोई सरकारी बैंक रिण नहीं देता और लोग साहूकारों से ऊंची ब्याज दर पर कर्ज लेते हैं।

उन्होंने कहा कि जो दंपति कृत्रिम गर्भाधान करते हैं, उनके जोखिमों को कवर करने के लिए बीमा का कोई प्रावधान नहीं है।उन्होंने कहा कि जो लोग कृत्रिम गर्भाधान का खर्च नहीं उठा पा रहे हैं, उन्हें बीमा कवर दिया जाना चाहिए।

राममूर्ति ने कहा कि सरोगेसी संबंधी विधेयक में सरकार को ‘‘नजदीकी रिश्तेदार की परिभाषा को कर स्पष्ट करना चाहिए। उन्होंने कहा कि इस लेकर कुछ भ्रम बना रहेगा। उन्होंने कहा कि ‘आईवीएफ’ प्रक्रिया को शोषण से बचाया जाना चाहिए। वहीं तेदेपा सदस्य के रवींद्रकुमार ने कहा कि देश में अधिकतर ‘आईवीएफ’ क्लीनिक निजी क्षेत्र में हैं।

उन्होंने सरकार से अनुरोध किया कि जिला सरकारी अस्पतालों में इस तरह की क्लीनिक खोली जानी चाहिए, तभी इन विधेयकों का उद्देश्य प्राप्त किया जा सकेगा। उन्होंने सरोगेसी विधेयक में नजदीकी रिश्तेदार की परिभाषा को स्पष्ट करने का सरकार से अनुरोध किया। चर्चा में भाग लेकर भाजपा के लेफ्टीनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) डॉ डी पी वत्स ने कहा कि समाज में हर दंपत्ति को संतान प्राप्त करने का अधिकार है तथा सरोगेसी विधेयक के प्रावधानों से इसतरह के लोगों को वैधानिक तरीके से संतान पाने का अधिकार सुनिश्चित होगा।

उन्होंने कहा कि सरोगेसी संबंधित विधेयक में किराये की कोख देने वाली गरीब महिलाओं को अधिक मुआवजा देने का प्रावधान होना चाहिए। बीजू जनता दल के अमर पटनायक ने कहा कि ‘एआरटी’ उपचार के लिए केवल विवाहित दंपति या ‘लिव इन’ युगल को ही मान्यता दी गयी है। उन्होंने कहा कि सरकार को अविवाहित युगल और ‘एलजीबीटीक्यू’ युगल को अनुमति दी जानी चाहिए।

चर्चा में हिस्सा लेकर भाजपा के डॉ विकास महात्मे ने कहा कि बांझपन की समस्या दूर करने में सहायक प्रजनन तकनीकों का उपयोग मददगार साबित हुआ है, लेकिन इसका दुरूपयोग भी हो रहा है,इसकारण इनके नियमन की जरूरत है। सरोगेसी विधेयक के बारे में महात्मे ने कहा ‘‘प्रवर समिति के सभी सुझावों को स्वीकार किया जाना महत्वपूर्ण है। सरोगेट मां का बीमा 36 माह का होगा ताकि उसके स्वास्थ्य की सुरक्षा होगी।’’