अभी से उपाय नहीं किए, तो 2050 तक समुद्र में समा जाएगा कोलकाता
कोलकाता। कोलकाता उन 8 बड़े तटीय शहरों में शुमार हो चुका है, जहां आपदा और इससे होने वाली मौतों के आंकड़े सबसे ज्यादा हैं। इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) ने अपनी रिपोर्ट में चेतावनी दी है कि भारत का यह पूर्वी शहर एशिया के उन 8 महानगरों में शामिल हैं, जहां समुद्र का स्तर बढ़ने से बाढ़ का खतरा बढ़ रहा है। सन 2050 तक स्थिति बहुत गंभीर हो सकती है। दुनिया के वे शहर जहां आपदा से होने वाली मौतों का खतरा ज्यादा है, उनमें टोक्यो, ओसाका, कराची, मनीला, तियांजिन और जकार्ता भी शामिल हैं।
डाउन टू अर्थ में प्रकाशित 3,676 पेज की रिपोर्ट में कोलकाता में जलवायु से जुड़े खतरों को लेकर कई बिंदुओं पर ध्यान आकर्षित किया है। तूफान और आपदा से होने वाली मौतों के मामले में एशिया के गुआंगझोउ, मुंबई, शेनज़ेन, तियांजिन, होचि मिन्ह, कोलकाता और जकार्ता शामिल हैं। अगर जलवायु परिवर्तन को लेकर यहां अभी से उपाय नहीं किए गए तो 2050 तक इन शहरों को होने वाला आर्थिक नुकसान बढ़कर 2।4 लाख करोड़ पहुंच जाएगा। यही नहीं पश्चिम बंगाल के दक्षिण 24 परगना जिला अक्सर चक्रवात की चपेट में आता रहता है।
इन चक्रवातों खासकर अम्फान की वजह से भारत के पूर्वी तट की ज्यादातर हरियाली से भरे क्षेत्र नष्ट हो गए हैं। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट बताती है कि चक्रवात की वजह से होने वाला नुकसान करीब 1 लाख करोड़ होगा। यही नहीं तूफान बाढ़ के अलावा पूर्वी शहर गर्म हवाओं से भी सबसे ज्यादा जूझता है। आंकड़ों के मुताबिक 2015 में लू की वजह से भारत में 2500 लोगों की जान गई थी, उनमें एक बड़ी संख्या कोलकाता शहर की थी। कोलकाता, कराची और दिल्ली के बाद सूखे के संकट में आने वाले शहरों में शामिल है। इससे ज्यादा चिंता की बात यह है कि इसके बावजूद यह शहर इन आपदाओं से निपटने के लिए तैयार नहीं है।
अध्ययन बताते हैं कि कोलकाता का सीवेज सिस्टम इस 1851 वर्गकिलोमीटर क्षेत्र में फैले शहर के लिए नाकाफी है। कुछ सिस्टम तो यहां पर ब्रिटिश दौर से चल रहे हैं। यहां पर ड्रेनेज सिस्टम 25 बेसिन में बंटा हुआ है और पूरे शहर को 20 सीवर जोन में बांटा गया है। इस तरह यहां का नगर निगम पूरे कोलकाता शहर का महज 55 फीसदी हिस्सा ही कवर करता है।
ऐसे में मानसून के समय, ज्वार आने पर शहर में जलजमाव की परेशानी बढ़ जाती है और हुगली नदी का पानी शहर में भरने लगता है। इसी तरह समुद्र स्तर के बढ़ने से सुंदरबन क्षेत्र में बाढ़ का खतरा बढ़ रहा है जो शहर से महज 100 किमी की दूरी पर मौजूद है। इस तरह से तूफान की आपदा से निकला शहर जलभराव की वजह से मलेरिया, डेंगू और दूसरी वेक्टर जनित बीमारियों की बढ़ोतरी का शिकार बनेगा।
वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर कोलकाता जलवायु परिवर्तन को लेकर सही उपाय अपनाए तो इस दिक्कत से निजात पा सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि इसके लिए कोलकाता को हरे और नीले इन्फ्रास्ट्रक्चर को लेकर गंभीर होना पड़ेगा। यहां हरे से मतलब शहर और इसके इर्द गिर्द की हरियाली को बचाना और बढ़ाना, और नीले से मतलब शहर के अंदर और सीमा पर मौजूद वेटलैंड, झील नदी और दूसरे जलस्रोतों को समृद्ध करना और संरक्षित करने से है। वेटलेंड, हुगली और दूसरे जलस्रोतों का बचाने से ही शहर को सुरक्षित रखा जा सकता है।