नाचो-गाओ, खुशियां मनाओ कि आई बैसाखी

– योगेश कुमार गोयल
भारत एक कृषि प्रधान देश है और हमारे यहां बैसाखी पर्व का संबंध फसलों के पकने के बाद उसकी कटाई से जोड़कर देखा जाता रहा है। इस पर्व को फसलों के पकने के प्रतीक के रूप में भी जाना जाता है। इसे विशेष तौर पर से पंजाब का प्रमुख त्यौहार माना जाता है। वैसे देशभर में बैसाखी को बड़ी धूमधाम एवं हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। सिख समुदाय बैसाखी से ही नए साल की शुरूआत मानते हैं। इस दिन एक-दूसरे को बधाईयां दी जाती हैं। पंजाब में किसान तब अपने खेतों को फसलों से लहलहाते देखता है तो इस दिन खुशी से झूम उठता है। खुशी के इसी आलम में शुरू होता है गिद्दा और भांगड़ा का मनोहारी दौर। पंजाब में ढ़ोल-नगाड़ों की धुन पर पारम्परिक पोशाक में युवक-युवतियां नाचते-गाते और जश्न मनाते हैं तथा सभी गुरूद्वारों को फूलों तथा रंग-बिरंगी रोशनियों से सजाया जाता है।
उत्तर भारत में और विशेषतः पंजाब तथा हरियाणा में गिद्दा और भांगड़ा की धूम के साथ मनाए जाने वाले बैसाखी पर्व के प्रति भले ही काफी जोश देखने को मिलता है लेकिन वास्तव में यह त्यौहार विभिन्न धर्म एवं मौसम के अनुसार देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग नामों से मनाया जाता है। पर्व की खूब धूम रहती है। पश्चिम बंगाल में इसे ‘नबा वर्ष’ के नाम से मनाया जाता है तो केरल में ‘विशू’ नाम से तथा असम में यह ‘बीहू’ के नाम से मनाया जाता है। बंगाल में ‘पोइला बैसाखी’ भी कहा जाता है और वे अपने नए साल की शुरुआत मानते हैं। हिन्दू धर्म की पौराणिक मान्यताओं के अनुसार हजारों साल पहले इसी दिन मां गंगा का पृथ्वी पर अवतरण हुआ था। इसीलिए इस दिन गंगा आरती करने तथा पवित्र नदियों में स्नान करने की भी परम्परा रही है।
बैसाखी को सूर्य वर्ष का प्रथम दिन माना गया है क्योंकि इसी दिन सूर्य अपनी पहली राशि मेष में प्रविष्ट होता है और इसीलिए इस दिन को ‘मेष संक्रांति’ भी कहा जाता है। यह मान्यता रही है कि सूर्य के मेष राशि में प्रवेश करने के साथ ही सूर्य अपनी कक्षा के उच्चतम बिन्दुओं पर पहुंच जाता है और सूर्य के तेज के कारण शीत की अवधि खत्म हो जाती है। इस प्रकार सूर्य के मेष राशि में आने पर पृथ्वी पर नवजीवन का संचार होने लगता है। इस तरह बैसाखी खुशियों का त्यौहार है। बैसाखी का पवित्र दिन हमें गुरू गोबिन्द सिंह जैसे महापुरूषों के महान् आदर्शों एवं संदेशों को अपनाने तथा उनके पद्चिन्हों पर चलने के लिए प्रेरित करता है और हमें यह संदेश भी देता है कि हमें अपने राष्ट्र में शांति, सद्भावना एवं भाईचारे के नए युग का शुभारंभ करने की दिशा में सार्थक पहल करनी चाहिए।
(लेखक 32 वर्षों से साहित्य एवं पत्रकारिता में निरन्तर सक्रिय वरिष्ठ पत्रकार हैं)