आजादी का जुनून: समुद्र का खारा पानी पीते हुए सिंगापुर तक पहुंच गए रामनगीना बाबू
उत्तर प्रदेश की धरती से एक से बढ़कर एक क्रांतिकारी निकले। आजादी के रणबाकुरों ने अपनी परवाह की न अपने परिवार की। निकल पड़े आजादी की जंग में आहुति देने। इस मामले में देवरिया जिले के युवा भी पीछे नहीं रहे। जिले के खोरीबारी गांव निवासी आजाद हिंद फौज के सेनानी स्व. रामनगीना राय व उनके साथ मधुबन तिवारी और करामद मियां तब नेताजी सुभाषचंद्र बोस के एक आह्वान पर सबकुछ छोड़कर देश को आजाद कराने सिंगापुर तक चले गए और आजादी के बाद ही घर लौटे।
बिना बताए निकल पडे रामनगीना राय के सुपौत्र समाजसेवी धीरज राय बताते हैं कि बात तब की है जब नेताजी सुभाषचंद्रबोस ने आजादी की जंग के लिए आजाद हिंद फौज के गठन की योजना बनाई। अपना सैन्य बल मजबूत करने के लिए नेताजी ने हिंदुस्तान के युवाओं का आह्वान किया जिसके बाद जमींदार परिवार में जन्में उनके छोटे दादाजी रामनगीना राय समेत अन्य क्रांतिकारी साथी वर्ष 1938 में देश की आजादी के लिए निकल पड़े। धीरज राय बताते हैं कि इस बात की जानकारी घरवालों को कानोंकान भी नहीं हुई।
कई गांवों के सेनानी रामनगीनाराय के साथ गांव के ही मधुबन पंडितजी, करामद मियां, सरलभगत, शिवनाथहजाम, बच्चनराय, रामायण शास्त्री समेत पास के गांव के कई क्रांतिकारी निकले। इधर घर पर इन युवाओं की खोज जारी रहती है काफी खोज बीन करने के बाद भी किसी का कोई पता नहीं चला। अंततः थक हार कर घर वालों ने भगवान भरोसे छोड़ दिया।
समुद्र का खारा पानी पीते पहुंचे सिंगापुर
सेनानियों के नाम पर स्थापित किया स्कूल धीरज राय कहते हैं कि छोटे दादाजी सेनानी रामनगीना राय ने अपने बड़े भाई समाजसेवी कमलाराय व रामदेवराय से जमीन व आर्थिक सहयोग से वापस नहीं लौटने वाले सेनानी मधुबन तिवारी व करामद मियां के नाम पर एक विद्यालय की स्थापना की। उनके इस प्रस्ताव को परिवार से लेकर गांव के लोगों ने भी स्वीकार किया और इस तरह खोरीबारी में वर्ष 1948 में शहीद मधुबन करामद कॉलेज की नींव पड़ी, जिसे बाद में सरकारी मान्यता मिली और अब यह शहीद मधुबन करामद इंटरमीडिएट कॉलेज हो गया जो आज भी उन शहीदों की याद में संचालित है। रामनगीना राय का समर्पण इतना था कि कॉलेज में अपने सगे संबंधी व स्वयं खुद भी कोई पद नही लिया।
आजीवन करते रहे दीन दुखियों की मदद आजादी के बाद रामनगीनाबाबू का जीवन पुजारी का हो गया। दिन भर भगवत भजन करना और फिर दिन दुखियों की सेवा करना। धीरज राय बताते हैं कि आजादी के बाद जब सेनानियों को पेंशन का ऐलान किया तब पुजारीजी पेंशन लेने के लिए भी तैयार नही हुए लेकिन अन्य साथियों के दबाव में उन्होंने पेंशन की हामी भरी और आजीवन पेंशन की राशि गरीबों, दीन दुखियों में बांटते रहे|
उन्हें बाबाजी की एक कविता आज भी याद है –” हे भगवान दो वरदान, इसी देश में आऊं मैं। वीर बनूं, धीर बनूं, सज्जनों को अपनाउ मैं।”