जवानों की हत्या पर मानवाधिकार कार्यकर्ता खामोश: वेंकैया
नई दिल्ली। छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले में विकास कार्यों के लिए सड़कों को सुरक्षित बनाने के काम में लगे सीआरपीएफ जवानों की कायरतापूर्ण हत्या से राष्ट्र सदमे में है। अन्य कई घायल हुए हैं। भूमिगत उग्रवादी तत्वों द्वारा की जाने वाली इस तरह की कायरतापूर्ण कार्रवाई अत्यंत निंदनीय है।
CRPF के जो जवान मारे गए और घायल हुए हैं वे देश की जनता की सेवा कर रहे थे। उन्होंने अपने जीवन को न्यौछावर कर दिया। राष्ट्र के लिए यह सर्वाेच्च बलिदान है। वर्दी पहने हुए जो समर्पित जवान मारे गए और घालय हुए हैं उनके परिवारों के प्रति केंद्र और राज्य सरकार पूरी तरह से समर्पित हैं।
केंद्र और राज्य सरकार पूरी दृढ़ता के साथ काम करती रहेंगी और इस तरह की हिंसात्मक कार्रवाइयों को समाप्त करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। पूरा राष्ट्र इस हत्या और हिंसा से सदमे में है, लेकिन से ही मानवाधिकार के तथाकथित हितैषी और आवाज उठाने वाले लोग चुप्पी साधे हुए हैं।
अगर पुलिस द्वारा किसी आंतकवादी या उग्रवादी को मारा जाता तो ये कार्यकर्ता आवाज उठाते और हिंसात्मक प्रतिक्रिया करते। लेकिन, बड़ी संख्या में जवानों और निर्दाेष लोगों को जब ऐसे लोग मारते हैं तब मानवाधिकार के कार्यकर्ता चुप्पी ओढ़ लेते हैं।
क्या मानवाधिकार केवल उन लोगों के लिए है जो अपनी अप्रासंगिक विचार धाराओं को आगे बढ़ाने के लिए हिंसा का सहारा लेते हैं? क्या मानवाधिकार सुरक्षाकर्मियों और साधारण लोगों के लिए नहीं है? जब गैर कानूनी तत्व इस तरह की अमानवीय हरकत करते हैं, तो मानवाधिकार कार्यकर्ता क्यों खामोश हो जाते हैं?
मैं यह कहना चाहता हूं कि इस तरह की हिंसात्मक गतिविधियों को मानवाधिकार की वकालत करने वाले तथाकथित कार्यकर्ताओं का मौन समर्थन प्राप्त है। ऐसी कार्रवाई हताशा में की जाती है ताकि केंद्र और राज्य सरकार के विकास कार्यों का सकारात्मक प्रभाव रोका जा सके और तेज आर्थिक विकास का लाभ गरीबों तक न पहुंच पाए।