सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के सचिव को हाईकोर्ट ने भेजा नोटिस
नई दिल्ली। DAVP प्रिंट मीडिया विज्ञापन नीति-२०१६ के संबंध में दायर रिट पर न्यायालय की अवमानना के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण सचिव अजय मित्तल को नोटिस जारी किए गये। कोर्ट द्वारा जारी नोटिस में सचिव को न्यायालय की अवमानना का प्रथमदृष्टा दोषी मानते हुए एक माह के अन्दर अपना उत्तर देने का समय दिया।
गौरतलब है कि पिछले वर्ष डीएवीपी द्वारा लागू की गई प्रिंट मीडिया विज्ञापन नीति-२०१६ के कई बिन्दुओं को लेकर देश भर के समाचार पत्र प्रकाशक अपना विरोध कर रहे हैं, यहां तक कि इस नीति के विरोध में कई प्रदर्शन किये गये व केन्द्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री वैंकेया नायडू व सूचना एवं प्रसारण राज्यमंत्री से भी मिलकर इस नीति के कई बिन्दुओं को संशोधित करने की गुहार लगाई गई।
लघु एवं मझोले समाचार पत्रों की अग्रणीय संस्था ऑल इंडिया स्मॉल एंड मीडियम न्यूजपेपर्स फेडरेशन ने इस नीति के कई बिदुओं को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट में पिछले वर्ष याचिका दायर की थी जिसपर न्यायालय ने सचिव, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को ३ माह के अन्दर याचिकाकर्ताओं का पक्ष सुनने व निस्तारण करने का आदेश दिया था, मगर याचिकाकर्ताओं का पक्ष सुनना तो दूर सचिव या उनके अधीनस्थ अधिकारियों ने इसका निर्धारित समय के अन्दर जवाब देना भी उचित नहीं समझा।
गत फरवरी में याचिकाकर्ता संस्था ने कोर्ट में अदालत की अवमानना का मामला-प्रथम दायर किया जिसे न्यायालय ने स्वीकार करते हुए प्रतिवादी पक्ष को निर्धारित समयान्तराल में ३ पत्र भेजने का निणय किया था। आदेशानुसार पत्र भेजने के बाद भी याचिकाकर्ता की कोई शिकायत दूर नहीं की गयी।
अतः अब याचिकाकर्ता द्वारा कोर्ट में दायर द्वितीय अदालत के अवमानना वाद में भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण सचिव अजय मित्तल को नोटिस जारी किए हैं। लघु एवं मझोले समाचार पत्रों के प्रकाशको के अनुसार भारत सरकार के विज्ञापनों को जारी करने के लिए डीएवीपी (विज्ञापन एवं दृश्य प्रचार निदेशालय) नोडल एजेन्सी है जिसके द्वारा एक नीति के तहत देश भर के समाचार पत्रों को विज्ञापन जारी किये जाते हैं।
पिछले वर्ष जारी प्रिंट मीडिया विज्ञापन नीति में कई ऐसी शर्तें लागू की गई जिसे लघु एवं मझोले समाचार पत्रों के प्रकाशक पूरा करने में असमर्थ हैं जिससे हजारों समाचार पत्रों को विज्ञापन जारी करने की सूची से बाहर कर दिया है। यह नीति छोटे समाचार पत्रों के लिए दमनकारी हैं। डीएवीपी द्वारा विज्ञापन रोक दिए जाने की स्थिति में समाचार पत्रों के प्रकाशन पर खतरा मंडरा रहा है।