लॉकडाउन में भूख से ओडिशा में आदिवासी महिला की मौत

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नई दिल्ली।
लॉकडाउन के दौरान भुखमरी से मौत के पहले संभावित मामले में ओडिशा के नयागढ़ जिले की 46 वर्षीय एक आदिवासी महिला की कथित तौर पर भोजन न मिलने के बाद मौत हो गई। नायागढ़ के कालिम्बा गाँव की दुखी जानी, जिन्हें उनके पति ने छोड़ दिया था, वह 24 जून को 3 दिनों तक बिना कुछ खाए-पीए रहने के बाद मर गई। जानी 24 जून की दोपहर को स्थानीय जंगल में गई थी। यहां वह बेहोश हो गई और उसकी मौत हो गई। क्योंकि जानी के अंतिम संस्कार के लिए उसके परिवार में कोई नहीं बचा था इसलिए अंतिम संस्कार करने के बजाय उसको दफनाया गया है। स्थानीय मीडिया द्वारा उनकी मृत्यु के बारे में रिपोर्ट के बाद, ओडिशा खाद्य अधिकार अभियान की एक तथ्य-खोज टीम ने इस महीने की शुरुआत में उनके गाँव का दौरा किया था और पाया था कि मरने से पहले 3 दिनों तक जनी के पास भोजन नहीं था।

खाद्य अधिकार मंच के सदस्य समीत पांडा का कहना है कि जानी पास के जंगलों से गैर-लकड़ी वन उपज के संग्रह पर निर्भर थी क्योंकि उनके पास आय का कोई अन्य स्रोत नहीं था। सार्वजनिक वितरण प्रणाली से सब्सिडी वाले खाद्य अनाज की आपूर्ति तक उनकी पहुंच सीमित और अनियमित थी। पांडा ने कहा कि हालांकि उनके पास मार्च 2016 का एक राशन कार्ड था, जिसने उन्हें सार्वजनिक वितरण प्रणाली से 10 किलो चावल मुफ्त में देने का अधिकार दिया था। उन्हें नवंबर 2018 में आखिरी बार चावल मिला था। वह नवंबर 2018 से मुफ्त राशन से वंचित थी। पांडा ने कहा कि आदिवासी महिला के पास मनरेगा के तहत जॉब कार्ड नहीं था, जो उसे काम दे सकता था। लॉकडाउन के दौरान उन्हें केंद्र सरकार द्वारा सहायता के रूप में जन धन सहायता नहीं मिली। न ही पीएम गरीब कल्याण योजना के तहत उन्हें चावल और दाल नहीं मिला है।