‘मेरा वन, मेरा धन मेरा उद्यम’ के लक्ष्य को प्राप्त करना

नई दिल्ली। केंद्रीय जनजातीय कार्य मंत्री, अर्जुन मुंडा ने कहा कि जनजातीय कार्य मंत्रालय 26 जनजातीय अनुसंधान संस्थानों (टीआरआई) को अनुसंधान के लिए टीआरआई अनुदान के अंतर्गत वित्तपोषित कर रहा है और देश भर में फैले हुए प्रतिष्ठित सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) के सहयोग से गुणवत्ता अनुसंधान कार्य में लगा हुआ है। उन्होंने कहा कि दिल्ली के आईआईपीए परिसर में आईआईपीए के सहयोग से राष्ट्रीय जनजातीय अनुसंधान संस्थान की स्थापना की जा रही है। इन साझेदार संगठनों को उत्कृष्टता केंद्र के रूप में नामित किया है।

जनजातीय कार्य के लिए उत्कृष्टता केंद्र (सीओई), जनजातीय कार्य मंत्रालय, भारतीय लोक प्रशासन संस्थान (आईआईपीए), नई दिल्ली द्वारा आयोजित राष्ट्रीय जनजातीय अनुसंधान सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए, मंत्री ने कहा कि उनके मंत्रालय ने ऐसे साझेदार संगठनों के साथ मिलकर व्यावहारिक मॉडल तैयार किया है जो कार्रवाई अनुसंधान के भाग के रूप में शुरू से लेकर अंत तक समाधान प्रदान करते हैं जैसे कि समस्या की पहचान, समाधान खोजना, परियोजना का निष्पादन,जिसे नीतिगत पहलों द्वारा लागू किया जा सकता है।

मुंडा ने कहा कि हमें आदिवासियों के विकास के लिए रास्ता बनाने के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग करना होगा। जनजातीय अनुसंधान संस्थानों (टीआरआई) द्वारा किया अनुसंधान हमारे आदिवासी विकास कार्यक्रमों को आगे बढ़ाने का आधार बनना चाहिए। उन्होंने कहा कि जनजातीय अनुसंधान संस्थानों की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है और उनके अनुसंधान से भविष्य के विकास के लिए रोडमैप तैयार करने में सहायता मिलेगी।

उन्होंने बल दिया कि ‘नीति के लिए अनुसंधान’, योजना और उसका वास्तविक कार्यान्वयन के बीच के अंतराल की पहचान करने में सहायता प्राप्ति के लिए मार्गदर्शक सिद्धांत होना चाहिए। जनजातीय अनुसंधान को न केवल आदिवासी जीवन और संस्कृति के मानवशास्त्रीय पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, बल्कि उनके द्वारा की गई प्रगति पर भी ध्यान केंद्रित करना चाहिए। टीआरआई द्वारा किए गए अनुसंधान से “मेरा वन मेरा धन, मेरी उद्यम” लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद मिलेगी, क्योंकि वन न केवल पर्यावरण के लिए महत्वपूर्ण हैं बल्कि आदिवासी आजीविका में भी एक प्रमुख भूमिका निभाते हैं।

मंत्री मुंडा ने कहा कि हमारी आदिवासी विकास योजनाएं बहुत ही गतिशील हैं। हम अतीत में कई प्रकार की बाधाओं से गुजरे हैं लेकिन हम अब नई तकनीक की मदद से आगे बढ़ रहे हैं। आदिवासियों के लिए विकास योजना को कैसे आगे बढ़ना है, यह रिसर्च आधारित होना चाहिए। लाभार्थियों का अनुमान लगाना सबसे महत्वपूर्ण पहलू है और सभी प्रकार के लाभों को सभी तक पहुंचाया जाना चाहिए। उन्होंने चिंता व्यक्त किया है कि नीति के लिए अनुसंधान और जनजातीय प्रशासन की संवैधानिक अवधारणा के बीच असंतुलन है। हम विकास योजनाओं को ध्यान में रखते हुए आदिवासी शोध नहीं कर सके। हम नीति में अनुसंधान के मध्यवर्तन से वंचित रह गए हैं।

मुंडा ने सुझाव दिया कि प्रस्तावित राष्ट्रीय जनजातीय अनुसंधान संस्थान (एनआईटीआर) में भी छात्रों को आदिवासी विकास की दिशा में शिक्षित करने के लिए एक शैक्षणिक विंग होना चाहिए।