पति पर नपुंसक होने का झूठा आरोप लगाना उत्पीड़न: हाईकोर्ट

नई दिल्ली। पत्नी पर नपुंसक होने के झूठे व अपमानजनक आरोप लगाए जाने को उच्च न्यायालय ने हिन्दू विवाह कानून के तहत पति का मानसिक उत्पीड़न बताया है। इसके साथ ही, उच्च न्यायालय ने इस वजह से हुए पति के मानसिक उत्पीड़न को तलाक का प्रमुख आधार माना है। उच्च न्यायालय ने इस तरह के एक मामले में तलाक मंजूर करने के निचली अदालत के फैसले के खिलाफ दाखिल याचिका खारिज करते हुए यह फैसला दिया है।

जस्टिस मनमोहन और संजीव नरूला की पीठ ने पत्नी की उन दलीलों को सिरे से ठुकरा दिया, जिसमें कहा गया था कि पति द्वारा लगाए गए आरोपों के जवाब में उसने भी उस पर नपुंसक होने का आरोप लगा दिया था। सभी तथ्यों पर गौर करने के बाद पीठ ने कहा कि अपीलकर्ता (पत्नी) ने सिर्फ पति के आरोपों के जवाब में नपुंसक होने का आरोप नहीं लगाया, बल्कि मामले की सुनवाई के दौरान लिखित बयान के साथ-साथ इसे साबित करने का भी प्रयास किया।

उच्च न्यायालय में पेश मामले के अनुसार, रश्मि और रवि (दोनों बदला हुआ नाम) की जून 2012 में शादी हुई थी। तलाकशुदा रवि की यह दूसरी शादी थी। शादी के कुछ ही दिनों बाद 1 जुलाई से 26 अगस्त 2012 तक दोनों पति-पत्नी सिंगापुर में रहे और 31 अगस्त को वापस आने के बाद शादी का पंजीकरण कराया। लेकिन, कुछ ही दिन बाद रवि ने अदालत में याचिका दाखिल कर तलाक की मांग की।