नीरज चोपड़ा ने दी देश की उम्मीदों को नई उड़ान
– योगेश कुमार गोयल
टोक्यो ओलम्पिक भारत के लिए अभी तक का सबसे अच्छा ओलम्पिक साबित हुआ है, जिसमें भारत ने 1 स्वर्ण, 2 रजत और 4 कांस्य सहित कुल 7 पदक जीते हैं। इससे पहले 2012 के लंदन ओलम्पिक में भारत 6 पदक जीतने में सफल हुआ था। 7 अगस्त 2021 का दिन तो भारत के लिए ओलम्पिक खेलों के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज हो गया है। दरअसल ओलम्पिक खेलों के इतिहास में भारत ने न केवल पहली बार सर्वाधिक 7 पदक जीते हैं बल्कि 7 अगस्त को भारत का एथलेटिक्स (ट्रैक एंड फील्ड इवेंट्स) में पदक जीतने का 121 साल लंबा इंतजार भी खत्म हो गया और यह करिश्मा कर दिखाया जेवलिन थ्रोअर नीरज चोपड़ा ने भारत को इस स्पर्धा में स्वर्ण पदक दिलाकर। टोक्यो ओलम्पिक में भारतीय एथलीट नीरज चोपड़ा ने ऐसा इतिहास रच डाला, जो उनसे पहले एथलेटिक्स में 121 वर्षों में कोई भी एथलीट नहीं कर सका।
एथलेटिक्स किसी भी ओलम्पिक का सबसे प्रमुख आकर्षण होते हैं लेकिन यह भारत का दुर्भाग्य ही रहा है कि 121 सालों में कोई भी भारतीय एथलीट ओलम्पिक में पदक नहीं जीत सका। सन् 1900 में हुए ओलम्पिक में ब्रिटिश इंडिया की ओर से खेलते हुए नॉर्मन प्रिटचार्ड ने एथलेटिक्स में दो पदक जीते थे लेकिन नॉर्मन प्रिटचार्ड भारतीय नहीं बल्कि अंग्रेज थे। इस प्रकार नीरज भारत के लिए ओलम्पिक में एथलेटिक्स में स्वर्ण पदक जीतने वाले पहले भारतीय खिलाड़ी हैं।
23 वर्षीय जेवलिन थ्रोअर नीरज चोपड़ा एथलेटिक्स में ओलम्पिक में स्वर्ण पदक जीतने वाले पहले भारतीय खिलाड़ी होने के साथ ओलम्पिक में व्यक्तिगत स्पर्धा में स्वर्ण पदक हासिल करने वाले दूसरे खिलाड़ी भी बन गए हैं। उनसे पहले 2008 के बीजिंग ओलम्पिक में निशानेबाज अभिनव बिंद्रा ने 10 मीटर एयर राइफल इवेंट का स्वर्ण अपने नाम किया था। इस तरह भारत को न सिर्फ 13 वर्षों के अंतराल बाद किसी इवेंट में स्वर्ण पदक मिला बल्कि 121 वर्षों में पहली बार एथलेटिक्स में भी स्वर्ण पदक जीतने में अप्रत्याशित सफलता मिली। नीरज की यह स्वर्णिम जीत भारत के लिए बेहद महत्वपूर्ण इसलिए भी है क्योंकि ओलम्पिक खेलों के इतिहास में यह भारत का अभी तक का केवल 10वां स्वर्ण पदक ही है। इससे पहले भारत को हॉकी में 8 और शूटिंग में 1 स्वर्ण पदक मिला है।
नीरज ने गत वर्ष साउथ अफ्रीका में आयोजित हुए सेंट्रल नॉर्थ ईस्ट मीटिंग एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में 85 मीटर के अनिवार्य क्वालिफिकेशन मार्क को पार करते हुए 87.86 मीटर दूर जैवलिन (भाला) फैंककर ओलम्पिक का टिकट हासिल किया था। टोक्यो ओलम्पिक के पहले राउंड में 12 खिलाडि़यों में से 8 ने अगले और फाइनल राउंड में जगह बनाई थी। क्वालीफाइंग राउंड में नीरज ने 86.65 मीटर दूर भाला फैंका था और अपने ग्रुप में पहले स्थान पर रहे थे। नीरज चोपड़ा के मामले में सबसे अच्छी बात यही रही कि शुरु से आखिर तक वह एक बार भी शीर्ष स्थान से नीचे नहीं फिसले। ओलम्पिक के फाइनल मुकाबले में नीरज ने अपने पहले प्रयास में 87.03 मीटर दूर भाला फैंका जबकि दूसरे प्रयास में 87.58 तथा तीसरे प्रयास में 76.79 मीटर दूर भाला फैंका और 87.58 मीटर के अपने सर्वश्रेष्ठ थ्रो के साथ स्वर्ण पदक जीतकर भारत के लिए ओलम्पिक खेलों में सफलता की नई इबारत रचने में कामयाब रहे।
प्रतिस्पर्धा में दूसरे और तीसरे स्थान पर चेक खिलाड़ी रहे। 86.67 मीटर थ्रो के साथ चेक के जाकुब वेदलेच को रजत और 85.44 मीटर के थ्रो के साथ चेक के ही वितेस्लाव वेसेली को कांस्य पदक मिला।
24 दिसम्बर 1997 को हरियाणा के पानीपत जिले के खांद्रा गांव में एक छोटे से किसान के घर पर जन्मे नीरज चोपड़ा टोक्यो ओलम्पिक में इतिहास रचने से पहले भी कई बड़ी-बड़ी चैम्पियनशिप जीत चुके हैं। भारतीय सेना में कार्यरत नीरज ओलम्पिक में बेमिसाल जीत दर्ज कराने से पहले कुछ बड़े मेगा स्पोर्ट्स इवेंट में स्वर्ण पदक जीतकर अपनी प्रतिभा का परिचय पहले ही दे चुके हैं। वह एशियाई खेलों, राष्ट्रमंडल खेलों, एशियन चैम्पियनशिप, साउथ एशियन गेम्स और विश्व जूनियर चैम्पियनशिप में स्वर्ण पदक अपने नाम कर चुके हैं।
इसी साल मार्च महीने में उन्होंने इंडियन ग्रैंड प्रिक्स-3 में 88.07 मीटर जैवलिन थ्रो के साथ अपना ही राष्ट्रीय रिकॉर्ड तोड़ दिया था, जो उनका अब तक का सबसे बेहतरीन प्रदर्शन है। इसके अलावा जून माह में पुर्तगाल के लिस्बन शहर में हुए मीटिंग सिडडे डी लिस्बोआ टूर्नामेंट में स्वर्ण पदक जीता। 2016 में पोलैंड में हुए आईएएएफ वर्ल्ड अंडर-20 चैम्पियनशिप में 86.48 मीटर दूर भाला फैंककर नीरज ने स्वर्ण पदक जीता था। उसी के बाद उन्हें सेना में जूनियर कमीशंड ऑफिसर के तौर पर नियुक्ति दी गई थी। 2016 में नीरज ने साउथ एशियन गेम्स में 82.23 मीटर दूर, 2017 में एशियन एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में 85.23 मीटर दूर और 2018 में इंडोनेशिया के जकार्ता में हुए एशियाई खेलों में 88.06 मीटर दूर भाला फैंककर स्वर्ण पदक जीते। एशियाई खेलों के इतिहास में अब तक भालाफैंक में भारत को केवल दो ही पदक मिले हैं और नीरज पहले ऐसे भारतीय एथलीट हैं, जिन्होंने एशियन खेलों में स्वर्ण पदक जीता। उनसे पहले वर्ष 1982 में गुरतेज सिंह को कांस्य पदक मिला था।
नीरज की एथलेटिक्स में आने की कहानी भी काफी दिलचस्प है। दरअसल उनके बचपन में उन्होंने या उनके परिवार के किसी भी सदस्य ने सपने में भी नहीं सोचा था कि वह एथलेटिक्स में किस्मत आजमाएंगे। बचपन में नीरज काफी मोटे और थुलथुले से थे। 13 वर्ष की आयु में उनका वजन करीब 80 किलोग्राम था और तब परिवारवालों के दबाव में उन्होंने एथलेटिक्स के जरिये अपना वजन कम करने का निश्चय किया। परिजनों ने उन्हें प्रतिदिन रेस लगाने को प्रोत्साहित किया ताकि उनका वजन कम हो सके लेकिन नीरज को दौड़ने में कोई दिलचस्पी नहीं थी। एक दिन उनके चाचा उन्हें गांव से करीब 15 किलोमीटर दूर पानीपत के शिवाजी स्टेडियम ले गए। वहां जब नीरज ने कुछ खिलाडि़यों को भाला फैंक का अभ्यास करते देखा तो उन्हें इस खेल से ऐसा लगाव हुआ कि वे अपनी कुछ वर्षों की कड़ी मेहनत के बलबूते पर देश के लिए पूरी दुनिया में इतिहास रचने में सफल हो गए। अपनी थ्रोइंग स्किल्स को बेहतर बनाने के लिए उन्होंने जर्मनी के बायो-मैकेनिक्स विशेषज्ञ क्लाउस बार्ताेनित्ज से प्रशिक्षण लिया, जिससे उनके प्रदर्शन में निरन्तरता आई।
देश के एक अनुभवी भालाफैंक खिलाड़ी जयवीर चौधरी ने एक दिन वर्ष 2011 में नीरज की प्रतिभा को पहचाना, जिसके बाद बेहतर सुविधाओं की तलाश में वह पंचकूला के ताऊ देवीलाल स्टेडियम में पहुंच गए, जहां उनका सामना राष्ट्रीय स्तर के खिलाडि़यों से हुआ और वहां मिलने वाली बेहतर सुविधाओं का लाभ उठाकर वह बहुत कम समय में वर्ष 2012 के अंत में अंडर-16 राष्ट्रीय चैम्पियन बन गए। उसके बाद और आगे बढ़ने के लिए उन्हें बेहतर उपकरणों और अच्छी खुराक के लिए वित्तीय सहायता की जरूरत थी। ऐसे में उनके संयुक्त किसान परिवार ने उनकी हरसंभव मदद की, जिसकी बदौलत वह वर्ष 2015 में राष्ट्रीय शिविर में शामिल हो गए और अगले ही साल 2016 में जूनियर विश्व चैम्पियनशिप में 86.48 मीटर के अंडर-20 विश्व रिकॉर्ड के साथ ऐतिहासिक स्वर्ण पदक जीतकर सुर्खियों में आए। बस, उसके बाद नीरज ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और उनकी उसी लग्न तथा कड़े परिश्रम का नतीजा टोक्यो ओलम्पिक में उनकी ऐतिहासिक जीत के रूप में दुनिया के सामने है। टोक्यो ओलम्पिक में इतिहास रचने के बाद नीरज की नजरें अब 2024 के पेरिस ओलम्पिक पर हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)