दीपावली यानि अत्त दीपो भव

तमसो मा ज्योतिर्गमय…

मुस्ताअली बोहरा/भोपाल

     अधर्म पर धर्म और असत्य पर सत्य की विजय के साथ ही सांस्कृतिक, धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व का त्यौहार है दीपावली। रावण वध और 14 साल का वनवास खत्म होने के बाद मर्यादा पुरूषोत्त्म भगवान श्रीराम के अयोध्या वापस लौटने पर लोगों ने दीपमालिका सजाकर उनका स्वागत किया था। नरक चतुर्दशी को राक्षस नरकासुर पर विजय प्राप्त की थी। द्वापर युग में भगवान कृष्ण ने राक्षस नरकासुर का संहार किया था। पांडवो के 12 वर्ष के निष्कासन के साथ साथ 1 वर्ष के अज्ञातवास से वापस घर आने के उपलक्ष्य में भी दीवाली मनाई जाती है। अश्विन महीने के कृष्ण पक्ष का अन्तिम दिन यानि दीवाली पर मारवाडी अपना नया साल मनाते हैं। गुजराती भी चन्द्र कलैण्डर (कार्तिक महीने में शुक्ल पक्ष के पहले दिन) के अनुसार दीवाली से एक दिन बाद अपना नया साल मनाते है। दीवाली को जैन धर्म में 527 ई.पू. महावीर स्वामी के मोक्ष या निर्वाण प्राप्ति के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। आर्य समाज के लोग इसे शरदीय नव-शयष्टी के रुप में मनाते है। दीप पर्व की देवी श्रीलक्ष्मी हैं। कहा जाता है कि उन्होंने इसी रात पति रूप में विष्णु का वरण किया। इसी दिन उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य का राजतिलक हुआ था। 
      इसी दिन गुप्तवंशीय राजा चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने ’विक्रम संवत’ की स्थापना की थी। अतः यह नए वर्ष का प्रथम दिन भी है। आज ही के दिन व्यापारी अपने बही-खाते बदलते हैं। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु ने राजा बलि को पाताल लोक का स्वामी बनाया था और इन्द्र ने स्वर्ग को सुरक्षित जानकर दीपावली मनाई थी। इसी दिन समुद्र मंथन के समय क्षीरसागर से लक्ष्मीजी प्रकट हुई थीं और भगवान विष्णु को अपना पति स्वीकार किया था। कहा जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर राजा बलि से माता लक्ष्मी को मुक्त करवाया था। इसी दिन आर्यसमाज के संस्थापक महर्षि दयानंद सरस्वती का निर्वाण हुआ था। स्वामी दयानंद सरस्वती द्वारा आर्य समाज की स्थापना भी इसी दिन की गई थी। सिख धर्म के लिए भी दीपावली बहुत महत्वपूर्ण पर्व है। इस दिन को सिख धर्म के तीसरे गुरु अमरदास जी ने लाल पत्र दिवस के रूप में मनाया था जिसमें सभी श्रद्धालु गुरु से आशीर्वाद लेने पहुंचे थे। इसके अलावा सन् 1577 में अमृतसर के हरिमंदिर साहिब का शिलान्यास भी दीपावली के दिन ही किया गया था।  

दीवाली का पॉच दिनों का समारोह अलग अलग महत्वों को दर्शाता है। दीवाली का पहला दिन, धनतेरस हिंदूओं के नये वित्तीय वर्ष के प्रारम्भ को दर्शाता है। धनतेरस भगवान धनवंतरी (देवताओं के चिकित्सक के रूप में भी जाना जाता है) की जयंती के रूप में मनाया जाता है। मान्यता है कि उनकी उत्पत्ति सागर मंथन के दौरान हुई थी। दीवाली का दूसरा दिन छोटी दीवाली या नरक चतुर्दशी के नाम से जाना जाता है जो भगवान कृष्ण की राक्षस नरकासुर पर जीत के रुप में जाना जाता है। दीवाली का तीसरा दिन लक्ष्मी पूजा या मुख्य दीवाली के नाम से जाना जाता है। इस दिन देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है और देवी लक्ष्मी के जन्म दिन के उपलक्ष्य में इसे मनाया जाता है। दीवाली का चैथा दिन बली प्रतिप्रदा या गोर्वधन पूजा के नाम से जाना जाता है। भगवान विष्णु की राक्षस राजा बाली पर विजय के साथ साथ भगवान कृष्ण की देवराज इन्द्र पर विजय के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। दीवाली का पांचवा और अंतिम दिन यम द्वितीया या भाई दूज के नाम से जाना जाता है। मृत्यु के देवता यम और उनकी बहन यामी (अर्थात् यमुना नदी) की कथा भाईदूज से जुडी हुई है।

महावीर स्वामी प्रज्ञाते नमः
जैन धर्म में दीवाली का अपना महत्व है। माना जाता है दीपावली के दिन, भगवान महावीर (युग के अंतिम जैन तीर्थंकर) ने 15 अक्टूबर 527 ईसा पूर्व को पावापुरी में कार्तिक के महीने (अमावस्या की सुबह के दौरान) की चतुर्दशी पर निर्वाण प्राप्त किया था। कल्पसूत्र (आचार्य भद्रबाहु द्वारा रचित) के अनुसार, ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में वहां अंधेरे को प्रकाशित करने के लिए कई देवता थे। यही कारण है कि दीवाली जैन धर्म में महावीर स्वामी के मोक्ष प्राप्ती के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। इसके साथ ही दीवाली के चैथे दिन या दीवाली प्रतिप्रदा को नये वर्ष की शुरूआत होती है। जैन धर्म में भगवान से प्रार्थना करने के लिये दीवाली पर पावा-पुरी की यात्रा करने का भी महत्व है। व्यवसायी धन की पूजा के साथ ही लेखा बहियों की पूजा करके धनतेरस मनाते हैं। काली चैदस पर विशेषतः महिलाओं द्वारा दो दिन का उपवास रखने की परंपरा है। अमावस्या के दिन भगवान की पूजा की जाती है। जैन धर्मावलम्बी महावीर स्वामी प्रज्ञाते नमः का जाप करते है। नए साल के दूसरे दिन महावीर स्वामी की मूर्ति की शोभायात्रा भी निकाली जाती है।

सिखों के लिए बंदी छोड दिवस
सिखों के लिए दीवाली का अपना महत्व है। सन् 1619 में सिक्ख गुरु हरगोबिन्द जी को ग्वालियर के किले में 52 राजाओं के साथ मुक्त किया जाना भी इस दिन की प्रमुख ऐतिहासिक घटना रही है। इन राजाओं और हरगोबिंद सिंह जी को बादशाह जहांगीर ने नजरबंद किया हुआ था। जेल से मुक्त होने के बाद हर गोबिंद जी अमृतसर के स्वर्ण मंदिर गए थे। लोगों ने उत्साह के साथ पूरे शहर को सजाकर और दीए जलाकर अपने गुरु की आजादी का जश्न मनाया। उस दिन से गुरु हरगोबिंद जी बंदी-छोर अर्थात् मुक्तिदाता के रूप में जाने जाने लगे। सिख धर्मावलम्बी अपने गुरु की मुक्ति दिवस के रूप में दीवाली मनाते हैं यही कारण है कि यह बंदी छोड दिवस के रूप में भी जाना जाता है। सिखों के दीवाली मनाने का एक और महत्व साल 1737 में भाई मणि सिंह जी की शहादत है। दीपावली के दिन पर उन्होंने खालसा की आध्यात्मिक बैठक में कर का भुगतान करने से इंकार कर दिया, जो मुगल सम्राट द्वारा लगाया गया था। भाई मणि सिंह जी की शहादत को याद कर बंदी छोर दिवस के रूप में दीवाली मनाई जाती है।

बौद्ध धर्म: अत्त दीपो भव
तथागत बुद्ध ने करीब ढाई हजार वर्ष पहले कहा था अत्त दीपो भव यानि खुद दीप बनो। इस दिन पर सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म अपनाया था। इस वजह से बौद्ध समुदाय द्वारा दीवाली मनाई जाती है। यही कारण है कि वे अशोक विजयादशमी के रूप में दीवाली मनाते है। वे मंत्र जाप के साथ ही सम्राट अशोक को याद कर इसे मनाते हैं।

प्रतिपदा पड़वा का महत्व
दीवाली का चैथा दिन वर्ष प्रतिपदा और प्रतिपदा के नाम से जाना जाता है जिसके मनाने का अपना महत्व है। यह हिन्दू कलैण्डर के अनुसार कार्तिक महीने में पहले दिन पडता है। वर्ष प्रतिपदा और प्रतिपदा पडवा के दिन राजा विक्रमादित्य के राज अभिषेक के साथ विक्रम संवत् के प्रारंभ से सम्बन्धित है। इसी दिन व्यवसायी अपने नये वित्तीय खाते शुरु करते है। पडवा के दिन राजा बलि को भगवान विष्णु ने हराया था, इसीलिए इसे बलि पद्दमी के नाम से भी जाना जाता है। यह दिन भगवान की राक्षस पर विजय की याद में भी मनाया जाता है।

दीपप्रति पादुत्सव
दीपावली को प्रकाश पर्व या दीप पर्व के रूप में भी मनाया जाता है। तुलसीदास रामचरितमानस में ‘विज्ञानदीप’ को प्रतीक स्वरूप प्रस्तुत किया। छांदोग्य उपनिषद के अनुसार प्रकृति का समस्त सर्वोत्तम प्रकाश रूप है। सूर्य प्रकृति का भाग हैं। कठोपनिषद मुंडकोपनिषद व श्वेताश्वतर उपनिषद में कहा गया है प्रकृति के केंद्र पर सूर्य प्रकाश नहीं, चंद्र किरणों का भी नहीं। न विद्युत है और न अग्नि, लेकिन उसी एक ज्योति केंद्र से यह सब प्रकाशित है। इसी तरह वृहदारण्यक उपनिषद में ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय, असतो मा सद्गमय यानी अंधकार से प्रकाश व असत से सत की ओर चलने का संदेश है।

ऋग्वेद के अनुसार, ‘जन-जन को प्रकाश से भरने के लिए ही अग्नि ने अमर सूर्य को आकाश में बिठाया है। दीपपर्व का उल्लेख पद्म पुराण व स्कंद पुराण में भी है। इतिहासकार अलबरूनी ने भी दीपावली का उल्लेख किया है। लगभग 3500 वर्ष ईसा पूर्व कठोपनिषद में यम और नचिकेता के बीच प्रश्नोत्तरों की स्मृति को भी दीपपर्व से जोड़ा जाता है। सातवीं शताब्दी के संस्कृत नाटक नागनंद में इसे ‘दीपप्रति पादुत्सव’ कहा गया है। नौवीं शताब्दी में राजशेखर ने काव्य मीमांसा में इसे दीपमालिका कहा है। ब्रह्मपुराण के अनुसार कार्तिक अमावस्या की इस अंधेरी रात्रि अर्थात् अर्धरात्रि में महालक्ष्मी स्वयं भूलोक में आती हैं।

विदेशों में दीवाली
दीपावली सिर्फ भारत में नहीं मनाई जाती अलबत्ता विदेशों में भी धूमधाम मनाई जाती है। मलेशिया में इस पर्व पर सार्वजनिक अवकाश रहता है। दीपावली के आयोजन में सिंगापुर सरकार भी शामिल होती है। श्रीलंका में इसे उत्सव के रूप में मनाया जाता है। ऑस्ट्रेलिया में 2006 से इसे मनाया जा रहा है।

विक्टोरियन संसद, फेडरेशन स्क्वायर मेलबोर्न हवाई अड्डे व भारतीय दूतावास को सजाया जाता है। अमेरिका में 2007 में इसे सरकारी घोषणा द्वारा स्वीकृत किया गया। तत्कालीन राष्टपति बराक ओबामा ने 2009 में दीपावली उत्सव में भाग लिया था। ब्रिटेन, न्यूजीलैंड, फिजी, पाकिस्तान, थाइलैंड, इंडोनेशिया, सूरीनाम, कनाडा और संयुक्त अरब अमीरात में भी दीप उत्सव होते हैं।

एक दीप देश के नाम….
बहरहाल, भारत मिली जुली संस्कृति का देश है। जितने मजहब, जितनी भाषा, जितनी बोलियां, जितने पारंपरिक तीज-त्यौहार यहां हैं उतने दुनिया के किसी भी देश नहीं। इस देश को एक सूत्र में पिरोए रखने की जिम्मेदारी भी हमारी ही है। हम अपने अधिकारों के लिए तो सडक पर उतर आते हैं लेकिन कर्तव्यों को बिसार देते हैं।

आज जरूरत है कि हम भगवान श्री राम की मर्यादा का अहतराम करें और ऐसी मिसाल पेश करें की दुनिया भारत को विश्व गुरू माने। आइए, इस बार जब हम दीपावली मनाएं तो एक दीप भारत की समृदिध, खुशहाली और सामाजिक सदभाव के नाम भी जलाएं।

दीपावली 2020
14 नवंबर
लक्ष्मी पूजा मुहूर्त – शाम 5 बजकर 28 मिनट से शाम 7 बजकर 24 मिनट तक (14 नबंवर)
प्रदोष काल – शाम 5 बजकर 28 मिनट से रात 8 बजकर 07 मिनट तक
वृषभ काल – शाम 5 बजकर 28 मिनट से रात 7 बजकर 24 मिनट तक
अमावस्या तिथि प्रारम्भ – दोपहर 2 बजकर 17 मिनट से (14 नबंवर)
अमावस्या तिथि समाप्त – अगले दिन सुबह 10 बजकर 36 मिनट तक (15 नबंवर)

दीवाली के मंत्र
.. ओम श्रीं ह्रीं श्री कमले कमलालयै मम प्रसीद-प्रसीद वरदे श्रीं ह्रीं श्री महालक्ष्म्यै नमः।। ओम श्रीं श्रियै नमः स्वाहा।
.. ओम श्रीं क्रीं चं चन्द्रायनमः।
… ओम ह्रीं ह्रीं हृं पुत्रं कुरु कुरु स्वाहा।
… ओम देवकी सुत गोविन्दं वासुदेव जगत्पते। देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणंगतः।।
…ओम देवेन्द्रणि नमस्तुभ्यं देवेन्द्र प्रिय भामिनि। विवाहं भाग्य मारोग्यं शीघ्र लाभं च देहिमे।।