बोधसिंग भगत: आम आदमी के दबंग नेता
बरसों बित जाते है एक अदद् नेता की तलाष में कई आते है, कई चले जाते है पर स्मृत वहीं रहते है जो जनता के लिए जीते है, बाकि तो विस्मृत हो जाते हैं। जो स्मृत रहते है वह दिलों पर राज करते है। ऐसे ही एक बानगी बालाघाट-सिवनी संसदीय क्षेत्र के सासंद बोधसिंग भगत की कथनी और करनी की परिणिती से दृष्टिगोचर होती ेहै। पहले विधायक और अब संसदीय कार्यकाल में इन्होंने आम आदमी का मान बढाया, आवाज बुलंद की, समस्याओं को जडमूलन और विकास की गति को नए आयाम दिए। खासबात जन-जन को अपने सासंद में अपना अक्ष दिखाई देने लगा। विषेषकर एक नेता के प्रति विष्वास पैदा हुआ कि यह अच्छा आदमी हैं, पढा-लिखा है, तेज तर्रार है, हमारे दुख हरेगा और रक्षा करेगा। इन्हीं सपनों को साकार करने के वास्ते बोधसिंग भगत सर्वषस्त्र न्योैछावर कर छोटे-छोटे लोगों के बढे-बढे काम दमदारी से कर रहे है। बनिस्बत् ही क्षेत्र में आम आदमी के दबंग नेता कहलाने लगे। अपनी बात को बेबाकी, निडरता और स्पष्टता से कहना इनकी मूल पहचान हैं। फलस्वरूप बोधसिंग भगत की जनहित में कही गई बात को टालना लाफरवाह और गैरजिम्मेदारों के लिए दातों तले चने जबाने के समान है।
दरअसल, श्री भगत को राजनीति या सार्वजनिक जीवन की सीख विरासत से नहीं मिली हैं। उन्होंने अब तक जो कुछ भी अर्जित की है, वह जिज्ञासा व इच्छाषक्ति की प्रबलता का परिणाम ही है। दृष्टिगत्् सरपंच के रूप में चालु हुआ राजनीति का कांरवा जनपद सदस्य, विधायक और संसद तक आ पहुंचा है। एक कृषक परिवार में जन्म लेने के कारण किसानों, मजदूरों और ग्रामीणों की परेषानियों तथा व्यापत चुनौतियों से भली भांति वाकिफ आम आदमी की तरह सहज-षैली, सादगी और देषी अंदाज में जीने वाले श्री भगत बचपन से ही गांवों और खेतीबाडी से जुडे रहे। ग्रामीण को ठगते निरंकुष-तंत्र के खिलाफ अपनाते बगावती तेवर ने ही अंतस में मौजूद नेतृत्व क्षमता को जगाने में मुख्य भूमिका निभाई। सही मायनों में ये आम आदमी के अच्छे, सच्चे और मजबूत पहरेदार बने हुए हैं।
लिहाजा, 21 मई 1955 को बालाघाट जिले के ग्राम घुबडगोंदी अर्थात् आनंदपुर में जन्में श्रीमति मूलकन राधेलाल भगत के सुपुत्र बोधसिंग ने बीएससी की उपाधि हासिल की। शासकीय सेवाओं के अवसरों को दरकिनार करते हुए, किसानी, जनसेवा और ग्राम विकास के विल्कप को चुना। इस निर्णय की खिलाफत करने के बजाय जीवन संगीनी श्रीमति तेजेष्वरी भगत ने दौरान वैभवषाली सरकारी नौकरी के आॅलीषान जीवन का मोह त्यागते हुए पग-पग में छाये की तरह अपने पति का साथ निभाया। कदमताल, ऊर्जावान नवजवान ने सम्यक् उत्पन्न राजनीतिक हालातों में अपनी शक्ति को सŸाापक्ष की निरंकुषता के खिलाफ झोंक दिया। जोषिली इस युवा तरूणायी ने अपने पहले ही विधानसभा चुनाव में अपनी नेतृत्व क्षमता का एहसास करा दिया की उनकी बातों और संघर्ष में दम है। हालांकि निर्दलीय प्रत्याषी के रूप में लडा यह चुनाव श्री भगत हार गए लेकिन 2003 के विधानसभा चुनाव में वे कांग्रेस के गढ खैरलांजी से पहली बार भारतीय जनता पार्टी के विधायक निर्वाचित हुए।
अविरल, 2014 में बालाघाट-सिवनी लोकसभा क्षेत्र के सासंद चुने गए। तब से लेकर अब तक ब्राडगेज, स्कूल, पानी, सडकों का संजाल और पासपोर्ट सेवा केन्द्र इत्यादि बहुयामी गतिमानों को धरा पर लाने में श्री भगत ने कोई कोर कसर नहीं छोडी। उसके परिणाम हमारे समक्ष अवतरित होने लगे है। ऐसे बहुयामी प्रतिभा के धनी हमारे दबंग सासंद ने प्रदेष भाजपा किसान मोर्चा के उपाध्यक्ष रहते हुए अद्भूत संगठन क्षमता का विलक्षण परिचय भी दिया। बेहतर, जन-मन के चतुर्दिक विकास के अभिप्राय श्री भगत सांगोपांग भाव से गत तीन दषकों से प्रयासरत हैं। ऐसी साहसी, प्रयोगधर्मी बेजोड नेतृत्व को जन्म दिवस की हार्द्धिक शुभकामनाएं।
हेमेन्द्र क्षीरसागर, लेखक व विचारक
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