सीमा विवाद: चीन की चैधराहट

(मुस्ताअली बोहरा)
भारत और चीन के बीच तनातनी बढती जा रही है। दोनों ही देशों की सेनाएं अलर्ट पर हैं। हालांकि, भारत की ओर से शांति और सदभाव कायम रखने की पूरी कोशिश हो रही है बावजूद इसके चीन कभी पूर्वी लददाख तो कभी अरूणाचल प्रदेश के इलाकों में उकसावे वाली कार्रवाई से बाज नहीं आ रहा है। इसके पहले भी चीन पर्दे के पीछे से अपने दोस्त पाकिस्तान को भारत के खिलाफ उकसाता रहा है।

भारत-पाकिस्तान के बीच जब भी तनाव हुआ है, तब हर बार चीन ने पाक का साथ दिया और अनुच्छेद 370 को खत्म करने के भारत के निर्णय के मामले में भी यही हुआ। अव्वल तो भारत के मामले में चीन छद्म रूप से पाकिस्तान का इस्तेमाल करता आया है। साथ ही चीन खुद को अंपायर की भूमिका में देख रहा है। वैसे, चीन वैश्विक स्तर पर आज एक कद्दावर देश है।

जब एशियाई मामलों की जाती है तो चीन को नकारा नहीं जा सकता क्योंकि यहां वह हर मामले में सबसे बड़े देश के रूप में अपनी पहचान रखता है। जिस तरह से भारत तरक्की कर रहा है तो चीन, भारत को उभरते समकक्ष प्रतियोगी के रूप में पाता है और यही चीन की चिंता का कारण भी है। अमरीका और उसके जो मित्र देश चीन की इन विस्तारवादी नीतियों का विरोध करते हैं, उनकी भारत से बढ़ती क़रीबी चीन के लिए चिंता का विषय भी है।

जम्मू-कश्मीर प्रांत के अक्साई चीन के 38,000 वर्ग किलोमीटर और शक्सगाम घाटी के 5,000 वर्ग किलोमीटर से अधिक इलाक़े पर चीन का नियंत्रण है। जम्मू-कश्मीर के इस पुनर्गठन के बाद आई चीन की प्रतिक्रिया ने दोनों देशों के बीच पहले से चले आ रहे सीमा विवाद को एक बार फिर हवा दे दी है। कश्मीर पर जब चीन की प्रतिक्रिया आई थी तो भारत ने भी कडा जवाब दिया था।

चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता हुआ छुनइंग ने कहा कि चीन अपनी पश्चिमी सीमा के इलाक़े को भारत के प्रशासनिक क्षेत्र में शामिल किए जाने का हमेशा ही विरोध करता रहा है। चीन की चिंताए इस बयान से जाहिर होती हैं कि हाल ही में भारत ने अपने एकतरफ़ा क़ानून बदलकर चीन की क्षेत्रीय संप्रभुता को कम आंकना जारी रखा है, यह अस्वीकार्य है और यह प्रभाव में नहीं आएगा।

इस बयान के बाद भारतीय विदेश मंत्रालय ने भी इस पर अपनी प्रतिक्रिया दी और इसे भारत का आंतरिक मामला बताते हुए कहा कि भारत अन्य देशों के आंतरिक मामलों पर टिप्पणी नहीं करता और उम्मीद करता है कि दूसरे देश भी ऐसा ही करेंगे। मालूम हो कि मार्च 1963 को चीन-पाकिस्तान के बीच हुए सीमा समझौते में पाकिस्तान ने अपने कब्ज़े वाली शक्सगाम घाटी चीन को सौंप दी थी।

यहां ये बताना लाजमी होगा कि बौद्ध बहुल लद्दाख को नया केंद्र शासित प्रदेश बनाने के भारत के फ़ैसले से भी चीन हैरान दिख रहा है, जिसकी सीमा तिब्बत के स्वायत्त क्षेत्र से लगी हुई है। अब यह इलाक़ा सीधे भारत की केंद्र सरकार के अधीन हो गया है जहां दलाई लामा समेत सैकड़ों की संख्या में तिब्बती शरणार्थी रह रहे हैं।
जम्मू-कश्मीर को स्पेशल स्टेट्स देने वाला अनुच्छेद 370 खत्म होने के बाद आखिरकार वही हो रहा है जिसका अंदाजा था। एक तरफ तो पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर को वापस लेने की बहस गर्मा गई है तो दूसरी तरफ पाकिस्तान तक में अखण्ड भारत के पोस्टर लग गए। दरअसल, असल बातचीत का मुद्दा ही पीओके और अक्साई चीन होना चाहिए, इसके साथ ही गिलगित को लेकर बात होना चाहिए जो अभी पीओके में है। पूरी दुनिया में गिलगित ही ऐसी जगह है जो पांच देशों अफगानिस्तान, तजाकिस्तान, पाकिस्तान, भारत और तिब्बत-चीन से जुडी हुई है। जम्मू कश्मीर का महत्व ही गिलगित और बाल्टिस्तान के कारण है। किसी जमाने में गिलगित में अमेरिका बैठना चाहता था, ब्रिटेन यहां अपना बेस बनाना चाहता था, रशिया की नजर भी गिलगित पर थी, आज चाइना गिलगित में पैर पसारने की जुगत में है और पाकिस्तान तो इस पर दावा कर ही रहा है। गिलगित के महत्व को सारी दुनिया समझती है। गिलगित ऐसा स्थान है जहां से सडक के जरिए दुनिया के अधिकांश देशों तक पहुंचा जा सकता है।
दरअसल, भारत जिसे सीमा मानता रहा है चीन उसे नहीं मानता। और इसी वजह से हर बार नए ठिकानों पर कब्जा जमाता है और उस क्षेत्र में दावा जताता है। हालांकि, भारत और चीन के बीच ये रजामंदी है कि जब तक सीमा विवाद सुलझ नहीं जाता तब तक एलएसी पर कम से कम सेना की तैनाती होगी। बावजूद इसके चीन की उकसावे वाले कार्रवाई जारी रहती है। कभी लददाख तो कभी अरूणाचल प्रदेश के इलाकों में चीन के सैनिक घुसपैठ करते रहते हैं। पिछले 33 सालों में आज ये हालाता है कि भारत और चीन दोनों ही देशों की सेनाएं हाई अलर्ट पर हैं। इतना ही नहीं पिछले 45 सालों में तीन बार गोलियां चलने की घटनाएं हो चुकीं हैं। बहरहाल, भारत अपनी ओर से एलएसी पर शांति बनाए रखने की पूरी कोशिश कर रहा है, चीन की बार बार उकसावे वाली हरकातों का भारतीय सैनिक भी माकूल जवाब दे रहे हैं। लेकिन, चीन को कडा सबक सीखाना जरूरी हो गया है।

लेखक……मुस्ताअली बोहरा, भोपाल