संवाद की कमी से बढ़ रहा अवसाद, दूसरे को सुनना जरूरी, बचाई 20 जिन्दगियां: दयाशंकर मिश्र इलाहाबाद

इलाहाबाद के गोविंद बल्लभ पंत सामाजिक विज्ञान संस्थान में लोकप्रिय पुस्तक जीवन संवाद विषय पर व्याख्यान में लोगों को अवसाद (डिप्रेशन) से बचने को लेकर विस्तार से चर्चा हुई. ‘जीवन संवाद’ पुस्तक के लेखक दयाशंकर मिश्र ने ‘अवसाद में युवा मन’ कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि हम अवसाद की मौजूदगी से इंकार नहीं कर सकते. हमें इसे स्वीकार करके सामूदायिक संवाद की तैयारी करनी चाहिए. मैंने अपनों को खोया है. इसीलिए मैं अवसाद पर एक दशक से काम कर रहा हूं. देशभर में जाकर बात कर रहा हूं, अवसाद पर घर-परिवार, समाज में खुलकर बात करने की जरूरत है. लोगों से संवाद करना ही उन्हें अवसाद से बाहर लाने का सबसे सटीक जरिया है. जिस तरह हम शारीरिक बीमारियों के लिए बिना संकोच डॉक्टर के पास जाते हैं, वैसी ही चिंता और संकोच रहित दृष्टिकोण मन के लिए रवाना है. निरंतर संवाद, ई-मेल के जरिये मैं अब तक 20 लोगों की जिंदगी बचाने में सफल रहा हूं, जो आत्महत्या कर लेने के विचार में थे. श्री मिश्र ने कहा कि अवसाद इसलिए है, क्योंकि हमने अपनी जिंदगी में कठोर मानक तय कर लिए हैं. असफल के लिए प्रेम विलुप्त हो रहा है. हर कोई आईएएस अफसर, आईआईटीएन बनना / बनाना चाहता है, लेकिन आईएएस, उद्योगपति ,डॉक्टर भी खुदकुशी कर रहे हैं. इसका मतलब है कि अवसाद हम सब के भीतर है .जो सफल हैं, उन्हें अवसाद नहीं है, यह केवल झूठी धारणा है. हमारे समाज में अवसाद के लिए स्वीकार्यता नहीं है. अवसाद में कोई व्यक्ति है तो हम कह देते हैं कि यह पागल है. ध्यान रहे, यह केवल बीमारी है. कोई भी इसकी चपेट में आ सकता है. मानसिक स्वास्थ्य, आत्महत्या के बचाव पर बहुचर्चित और प्रशंसित किताब ‘जीवन संवाद’ के लेखक दयाशंकर मिश्र ने कहा, अपने नजरिए को बदलिए, अवसाद में आया कोई व्यक्ति पागल नहीं होता. अवसाद विदेशों में भी है, लेकिन विदेशों में लोग बात करते हैं. हमारे यहां इस पर बात कम होती है. बात करने से लोग डरते हैं. अवसाद के दौर से गुजरे विराट कोहली, दीपिका पादुकोण ने जिस तरह इस विषय पर चुप्पी तोड़ी, उसकी हमें सराहना करनी चाहिए. भारत और दुनिया भर में विशेषज्ञ इस बात पर जोर दे रहे हैं कि अवसाद से निकलने में संवाद और रिश्तों की घनिष्ठता, मनोचिकित्सकों, विशेषज्ञों की सलाह महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.

उन्होंने कहा कि हम आपस में बातचीत नहीं कर रहे. हमें मोबाइल और सोशल मीडिया के दायरे से बाहर निकलना होगा. जब हम एक दूसरे को सुनेंगे नहीं तो कैसे उसे समझेंगे. हम अपने बगल में बैठे व्यक्ति के मन की बात नहीं समझ पा रहे. इसका मतलब है ‘कनेक्शन इज पुअर’ हमारे संवाद का कनेक्शन टूट रहा है. हम उन्होंने कहा कि हम एक दूसरे को सुन नहीं रहे हैं, इसलिए हम एक दूसरे को समझ नहीं रहे हैं. हम बहुत तेज़ हो गए हैं. हम बहुत आगे जाना चाहते हैं, लेकिन अब हमें थोड़ा धीमा होने की जरूरत है. मैं नौजवानों से कहना चाहता हूं कि थोड़ा धीरे चलना है. थोड़ा जीवन की गुणवत्ता पर जोर देना.

दयाशंकर मिश्र ने अवसाद पर दिए व्याख्यान में कहा कि अवसाद में एक सबसे बड़ा कारण जेंडर का भी सामने आ रहा है.ये भेदभाव भी अवसाद का कारण बनता है.हमारा सबसे बड़ा रोग है क्या कहेंगे लोग? लेकिन हमें इससे ही तो बाहर निकलना है. उन्होंने कहा कोई भी बात मन में नहीं रखना है हम छोटी-छोटी बातों को मन में रख लेते हैं और यहीं से हम तनाव लेना शुरू कर देते हैं. दयाशंकर मिश्र ने एक भाई -बहन का किस्सा सुनाते हुए कहा कि नदी किनारे रेत में छोटी लड़की को भाई ने थप्पड़ मारा तो उसने रेत पर लिखा, मुझ्े मेरे भाई ने थप्पड़ मारा, उसके कुछ दिन बाद उसी जगह भाई ने अपनी बहन को डूबने से बचा लिया, इस बार उसकी बहन ने एक पत्थर पर लिखा, भाई ने जीवन बचाया. इसका मतलब है कि हमें उन बातों को भुलाना है जो हमारे लिए सुखद स्मृतियां नहीं हैं और उन बातों को पत्थर पर लिखना है जो हमारे जीवनभर स्मरणीय, अनमोल हैं.

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष राधाकांत ओझा ने कहा कि कुंठा, तनाव और बीमारी के कारण लोग अवसाद की ओर जाते हैं. हर कोई व्यक्ति जो कॉमन सेंस रखता है वह अर्जुन की तरह है. महाभारत युद्ध में भी युद्ध के परिणाम को लेकर डिप्रेशन था. इसी पर कृष्ण ने कहा था कि आप उस पर विचार कर रहे कि लोग मारे जाएंगे. उन्होंने कहा कि काम करते समय एक अल्टरनेट आप रखेंगे तो अवसाद में नहीं जाएंगे. उन्होंने कहा कि अवसाद से बचने आप अपने बच्चों से बात शेयर करिए. कार्यक्रम डॉ हरीश प्रताप सिंह सदस्य लोक सेवा आयोग उत्तर प्रदेश ने कहा कि अवसाद से बचने के लिए दिनचर्या में सुधार जरूरी है. उन्होंने कहा कि हम लक्ष्य के लिये निकले, नहीं मिला तो हम अवसाद में आ गए. नकारात्मक सोच ही अवसाद का कारण बनती है. इसलिए व्यस्त रखिये खुद का सकारात्मक नजरिया रखिये. मुरझाए चेहरों को खिलाने का काम हमारा है.

कार्यक्रम में प्रोफेसर हरिशंकर उपाध्याय ने कहा कि सबके जीवन में अवसाद आता है. आकांक्षाएं बहुत हो जाती हैं, उनके सपने पूरे नहीं होते तो हिम्मत हार जाते हैं. विश्व विद्यालय इलाहाबाद के प्रोफेसर हर्ष कुमार कुलानुशासक ने कहा कि अवसाद से से हर कोई जूझ रहा है और इससे निकलने के लिए हमें एक दूसरे को समझना जरूरी है. अवसाद अचानक नहीं आता हमें इसके लक्षण भी नजर आने लगते हैं. इसे समझने और इसे दूर करने की जरूरत है. प्रोफेसर डॉ. विवेक कुमार ने कहा कि यदि आप अवसाद में जा रहे हैं तो, बाउंस बैक करें, जो नीचे जाता है वह ऊपर भी आता है. यही आप करें. इस अवसर पर डॉ राकेश पासवान ने भी अपने अनुभवों का जिक्र किया. उन्होंने सतत बातचीत और संवाद की जरूरत पर बल दिया.