गुड फ्राइडे: मानवता की भलाई के लिए यीशु का बलिदान
हे ईश्वर! इन्हें क्षमा करें, ये नहीं जानते कि ये क्या कर रहे हैं। यह प्रार्थना थी यीशु (ईसा मसीह) की उन हत्यारों के लिए, जिन्होंने भयावह अमानवीय यातनाएं देते हुए उनके प्राण ले लिये। यीशु के सिर पर कांटों का ताज रखा गया, उन्हें सूली को कंधों पर उठाकर ले जाने को विवश किया गया और गोल गोथा नामक स्थान पर ले जाकर दो अन्य अपराधियों के साथ बेरहमी से कीलों से ठोकते हुए क्रॉस पर लटका दिया गया। यीशु ने उत्पीड़न और यातनाएं सहते हुए मानवता के लिए अपने प्राण त्याग दिए और दया-क्षमा का अपना संदेश अमर कर दिया।
यीशु ने मानवता की भलाई के लिए बलिदान दिया। उनके बलिदान, उनकी शिक्षाओं को याद करने का दिन है ‘गुड फ्राइडे’। ईसाई मान्यता के अनुसार दुनिया को प्रेम, दया, करुणा, परोपकार, अहिंसा, सद्व्यवहार और पवित्र आचरण का संदेश देने वाले यीशु को इसी दिन उस जमाने के धार्मिक कट्टरपंथियों द्वारा क्रॉस पर चढ़ाया गया था। गुड फ्राइडे के दिन गिरजाघरों में घंटा नहीं बजाया जाता, बल्कि लकड़ी के खटखटे बजाए जाते हैं और लोग चर्च में क्रॉस को चूमकर यीशु का स्मरण करते हैं। ईसा मसीह परिवर्तन के पक्षधर थे और उन्होंने मानव प्रेम की सीमा नहीं बांधी, बल्कि अपने बलिदान से उसे आत्मकेन्द्रित एवं स्वार्थ से परे बताया। पृथ्वी पर बढ़ रहे पापों के लिए बलिदान देकर ईसा ने निःस्वार्थ प्रेम की पराकाष्ठा का अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया।
ईसाई धार्मिक मान्यताओं के अनुसार क्रॉस पर लटकाए जाने के करीब तीन दिन बाद रविवार को ईसा मसीह पुनः जीवित हो गए थे, इसीलिए गुड फ्राइडे के बाद आने वाले रविवार को ‘ईस्टर संडे’ के नाम से जाना जाता है। पुनः जीवित हो उठने के बाद ईसा ने अपने शिष्यों के साथ 40 दिनों तक रहकर हजारों लोगों को दर्शन दिए। ईसा मसीह के जी उठने की याद में ही दुनियाभर में ईसाई धर्म के अनुयायी ‘ईस्टर संडे’ मनाते हैं। ईस्टर की आराधना उषाकाल में ईसाई महिलाओं द्वारा की जाती है, क्योंकि माना जाता है कि यीशु का पुनरुत्थान इसी वक्त हुआ था और उन्हें सबसे पहले मरियम मदीलिनी नामक महिला ने देखा था तथा अन्य महिलाओं को इस बारे में बताया था।
योगेश कुमार गोयल, लेखक (32 वर्षों से साहित्य एवं पत्रकारिता में सक्रिय वरिष्ठ पत्रकार हैं)