ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्
ब्रह्मबेला में जो जागत है सो पाबत है
जीवन का प्रारंभ प्रतिदिन ब्रह्ममुहूर्त में जागने से ही होता है। सभी पशु-पक्षी ब्रह्ममुहूर्त में जागकर, अपने आलस्य को त्याग कर दैनिक क्रिया कलापों में व्यस्त हो जाते हैं। प्रातः उठने के अनेक लाभ हैं। प्रातः की वायु स्वास्थ्यप्रद और दोषरहित होती है। इसे ‘प्राणवायु’ और ‘वीर वायु’ भी कहते हैं। इसके सेवन से बल की वृद्धि होती है, मुख की क्रांति बढती है, मन सदा प्रसन्न रहता है, बुद्धि तीव्र होती है। शरीर के समस्त अंग निरोग रहते हैं। प्रातः उठने से शरीर में चुस्ती व स्फुर्ती आती है। इसके विपरीत जो लोग दिन चढे तक सोते रहते हैं वे नाना प्रकार की व्याधियों में फंसे रहते हैं। आलस्य और प्रमाद बढ जाता है। दिन भर सुस्ती रहती है और किसी काम में मन ही नहीं लगता।
प्रातःकाल ऊषादेवी अपने दोनों हाथों से स्वास्थ्य, आरोग्यता, बुद्धि, बल और दीर्घायु के अनुदान-वरदान बांटती है। उस मधुर बेला में जो जागते हैं वहीं उन्हे पा सकते हैं। जो जागत हैं सो पावत हैं,जो सोवत हैं सो खोवत हैं। मानव के दैनिक जीवन का प्रारंभ इस पुनीत प्रभात की बेला में ही होता है। इस मंद पवित्र पवन के झोंके शरीर के रोम रोम को स्फूर्ति से भर देते हैं और जीवन के निर्माण, उत्थान और विकास के लिए उत्साह का संचार करते हैं। मन में आगे बढने और कुछ कर दिखाने की ललक जागृत होती है। प्रातःकाल का सुंदर, मधुर और नयनाभिराम वातावरण, पक्षियों का चहचाना, पशुओं की अठखेलियां, हमारे अंतःकरण में नव चेतना और नव जीवन की ज्योति प्रज्ज्वलित कर देते हैं।प्रकृति के इस वरदान से हम अपने को कभी भी वंचित न करें। पशु-पक्षी सभी ब्रह्ममुहुर्त में जागकर इस प्राणवायु का सेवन करते हैं और कभी भी बीमार नहीं होते। ब्रह्ममुहुर्त में उठना मनुष्य के स्वास्थ्य, मन, बुद्धि व आत्मा सभी के लिए परम उपयोगी है। यह शरीर में संजीवनी शक्ति का संचार करती है।
जो व्यक्ति शारीरिक, मानसिक व आत्मिक उन्नति चाहते हैं उन्हे ब्रह्ममुहुर्त में, प्रातः चार बजे के लगभग, बिस्तर छोड़कर खुली वायु में अवश्य आ जाना चाहिए।