मोदी सरकार ने महिलाओं को दिया राजनीति का बड़ा तोहफा

महिला आरक्षण बिल सदन में पास, 2029 के आम चुनाव में मिलेगा फायदा

PM thanks all the Rajya Sabha MPs who voted for the Nari Shakti Vandan Adhiniyam at Parliament House, in New Delhi on September 21, 2023.

Sandeep Singh, Consulting Editor
Sandeep Singh, Consulting Editor

केंद्र की मोदी सरकार ने पिछले 27 सालों से अटके महिला आरक्षण बिल को लागू कर दिया है. इस बिल को पास करवाने की कोशिशें पूर्व प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल से लेकर अटल बिहारी वाजपेयी तक ने की थी, लेकिन 27 सालों तक यह सदन में अटका रहा है. अब 2024 में लोकसभा चुनाव होना हैं, तो देश की जनता को खुश करने की तमाम कोशिशें मोदी सरकार करने में जुटी हुई है. इस बिल को पास करवाकर भाजपा महिलाओं की आधी आबादी को खुश करने के साथ इंडिया गठबंधन (I.N.D.I.A.) में भी फूट डालना चाहती है, क्योंकि इस बिल के प्रस्ताव के विरोध में नीतीश कुमार, लालू प्रसाद और अखिलेश यादव की पार्टियां हमेशा रही हैं. 1996 में जब ये बिल बना था, तभी से ये नेता इसमें ओबीसी (OBC) कैटेगरी की महिलाओं के लिए उसी कोटे में आरक्षण की मांग उठा रहे हैं. हालांकि ये बिल 2023 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृव्त वाली सरकार में पास हो सका है, लेकिन महिलाओं को इसका फायदा 2029 में होने वाले चुनाव में मिलेगा. ऐसे में विपक्ष की मांग है कि इसे 2024 के चुनाव में ही लागू किया जाए.

1996 से चल रही है कोशिशें
देश की राजनीति में महिलाओं को भागीदारी नहीं मिल पाई जो उन्हें मिलनी चाहिए थी. पहली बार 2019 के चुनाव में 15 फीसदी महिलाएं लोकसभा में पहुंची थीं. लेकिन 27 सालों में महिला राजनीति का सफर बेहद दिलचस्प रहा है. महिला आरक्षण बिल को 1996 में तैयार किया था. हालांकि शुरू से इस बिल को लेकर विवाद रहा है. पहली बार में विरोधी नेताओं ने इसे पेश नहीं होने दिया है. पूर्व प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल ने फिर पेश करने की कोशिशें कीं है. हालांकि इसमें उनकी ही पार्टी ने साथ नहीं दिया है. जिसके बाद 1998 में ही पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने भी इसे पेश करने की कोशिशें कीं. लेकिन तब समाजवादी पार्टी के नेताओं ने इसका कड़ा विरोध किया है. फिर साल 2000 में कानून मंत्री राम जेठमलानी ये बिल पेश करने में तो सफल रहे लेकिन उस वक्त भी वो इसे पास नहीं करवा पाए. 2002 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने इस बिल के पक्ष में फिर एक बैठक बुलाई, लेकिन उस वक्त भी इस पर सहमति नहीं बन पाई, क्योंकि मुलायम सिंह यादव की सपा और लालू यादव की आरजेडी इसमें ओबीसी आरक्षण की मांग पर अड़ी रही है. यूपीए सरकार में भी इस बिल को पास कराने की तमाम कोशिशें की गईं लेकिन वो भी राज्यसभा में इसे पास नहीं करवा पाई है.

कैसी दिखेंगी लोकसभा की तस्वीर
अगर इस बिल के पास होने के बाद लोकसभा में महिला सदस्यों की संख्या 82 से बढ़कर 181 हो जाएगी. फिलहाल इस बिल में ओबीसी आरक्षण की अलग से कोई व्यवस्था नहीं है. ओबीसी आरक्षण की मांग के लिए ही ये बिल इतने समय से लटका हुआ था. ये बिल 15 साल के लिए लाया गया है. उसके बाद इसे जारी रखने के लिए फिर से इसे पेश करना होगा.

ओबीसी कोटे की उठाई मांग
देश की सबसे बड़ी पार्टियां भाजपा और कांग्रेस हैं, इसलिए इन दोनों पार्टियों को इसका सबसे ज्यादा फायदा मिल सकता है. अन्य क्षेत्रीय पार्टियों को कम मिलने की उम्मीद है. इसी के चलते ओबीसी वोट बैंक के आधार पर राजनीति करने वाली आरजेडी (RJD), सपा (SP) और जेडीयू (JDU) इस बिल में ओबीसी (OBC) सब कोटे की मांग पर अड़ी हुई हैं, क्योंकि ऐसा न होने पर वो चुनाव में पिछड़ सकती हैं.

यूपी-बिहार का क्या कहता है गणित
बिहार में लोकसभा की 40 सीटें हैं, जिसमें वहां से 10 फीसदी महिला सांसद भी लोकसभा में नहीं हैं. 2019 में बिहार से 3 महिलाएं चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंची थीं. जिनमें बीजेपी, जेडीयू और लोजपा की 1-1 महिला सांसद शामिल हैं. कांग्रेस और राजद से यहां एक भी महिला सांसद नहीं हैं. वही दूसरी ओर, 80 लोकसभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश में ये आंकड़ा बिहार से ज्यादा है. लोकसभा में मौजूदा 11 महिला सांसद हैं. 2019 में उत्तर प्रदेश में कुल 104 महिलाएं चुनावी मैदान में उतरी थीं. जिनमें से कांग्रेस की 12 महिला कैंडिडेट, बीजेपी की 10 और अपना दल की 1, सपा की 6 और बसपा की 4 महिला कैंडिडेट शामिल थीं.

2019 में महिला कैंडिडेट
अगर 2019 में हुए लोकसभा चुनाव पर नजर डालें, तो पूरे देश में 724 महिलाओं उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा था. जिनमें सबसे ज्यादा महिला कैंडिडेट कांग्रेस से थीं. कांग्रेस ने 54 महिलाओं को मैदान में उतारा था. वहीं बीजेपी ने 53 महिला उम्मीद्वारों को टिकट दिया था. इसके अलावा पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश से 11-11 महिलाएं जीतकर लोकसभा पहुंची थीं.