चिंतन-मनन: मन को जगाएं


दूसरा महायुद्ध चल रहा था। भीषण बमवर्षा हो रही थी। पूरा लंदन नगर संत्रस्त था। सारे नगर में भय का साम्राज्य छाया हुआ था। पर उसी नगर में एक बूढ़ी महिला निश्चिंत रूप से सोती और निश्चिंत जागती। आस-पास के लोगों की नींद पूरी तरह गायब हो चुकी थी।

वे न सुख से सो पाते और न सुख से जाग पाते। दूसरे सभी जागते, किन्तु बुढिया निश्चिंत सोती, गहरी नींद लेती। लोगों ने बुढिया से पूछा, ‘मां! क्या बात है? सारा नगर भय से आप्रान्त है। यहां कोई भी सुख की नींद नहीं सो सकता। तुम कैसे सुखपूर्वक सो जाती हो? इसका रहस्य क्या है?’

बुढिया ने कहा, ‘बेटा! इसका रहस्य यही है कि मेरा प्रभु सदा जागता है। फिर मैं क्यों जागती रहूं? दो को जागने की जरूरत नहीं है।’ यह सच है। जब मन जाग जाता है, फिर कोई जागे या न जागे, कोई जरूरत नहीं है। किसी को जगाने की भी जरूरत नहीं है।

वास्तविकता तो यह है कि मन के जगाने पर कोई सोया रह नहीं सकता। सबको जागना ही पड़ता है। एक के जागने पर सब जाग जाते हैं। एक के सोने पर सब सो जाते हैं। मन का मार्ग बहुत लम्बा-चौड़ा और दीर्घ है। वह एक क्षण में सारी दुनिया का चक्कर लगा सकता है।

मन को साधने के बाद उसका भटकाव मिट जाता है, प्रमाद मिट जाता है, सोने की आदत मिट जाती है। फिर वह पूर्ण अनुशासित हो जाता है, नियंत्रित हो जाता है। जागरूकता का विकास सिद्धान्त को जानने मात्र से नहीं होता। उसका विकास तब होता है, जब साधक उचित दिशा में जागरूकता का अभ्यास करे।