1 साल में 22 तेंदुओं का शिकार, बढी शिकार की घटना

भोपाल। बीते साल में मप्र में तेंदुओं के शिकार की घटनाएं बढ़ी हैं। साल 2021 में 22 तेंदुओं का शिकार का शिकार किया गया।मध्य प्रदेश में बीते साल 46 तेंदुओं की मौत की पुष्टि हुई है। इनमें से तीन मामलों में खाल, नाखून, दांत जब्त किए गए, जबकि शेष मामलों में तेंदुआ का शव जब्त किया है। तेंदुआ स्टेट का सम्मान रखने वाले मध्य प्रदेश में तेंदुओं के शिकार की घटनाएं लगातार बढ रही है जो कि चिंताजनक है।

तेंदुए के अंगों का तांत्रिक क्रिया में कोई उपयोग नहीं होता है, लेकिन इनके अंगों को बाघ के अंग बताकर शिकारी बेच देते हैं। तेंदुओं की संख्या के मामले में मध्य प्रदेश करीब दो दशक से देश में पहले स्थान पर है। वर्ष 2018 में किए गए आकलन के अनुसार प्रदेश में 3421 तेंदुए हैं, लेकिन अब तेंदुओं के संरक्षण की दिशा में कठोर कदम उठाने का समय आ गया है। क्योंकि प्रदेश में तेंदुओं के शिकार के मामले बढ़ रहे हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि तेंदुए आसानी से शिकारियों की गिरफ्त में आ जाते हैं और ऐसा उनकी बकरी-कुत्तों की चाहत को लेकर होता है।

वन अधिकारी बताते हैं कि तेंदुए को चीतल, काले हिरण के अलावा बकरी और कुत्ता बेहद पसंद है। प्रदेश में बाघ बढ़ रहे हैं, घने जंगल में उनका राज चलता है। इसलिए तेंदुए बस्तियों के नजदीक रहते हैं। यहां उनका बाघ से सामना भी नहीं होता और पसंद के शिकार (बकरी-कुत्ते) भी मिलते रहते हैं और यहीं वे शिकारियों के जाल में फंस जाते हैं।मध्य प्रदेश में मारे गए 22 में से आठ तेंदुओं को करंट लगाकर मारा गया है। छह की मौत फंदे में फंसने के कारण हुई है। पांच अन्य के शव भी मिले हैं।

जिन्हें शिकार की श्रेणी में रखा गया है और तीन मामलों में तेंदुओं की हड्डी, खाल, पंजे, मूंछ के बाल, दांत और नाखून जब्त किए गए हैं। रातापानी अभयारण्य के पूर्व संचालक आरके दीक्षित बताते हैं कि लोगों की धारणा है कि बाघ के दांत, नाखून, मूंछ के बाल से उन्नति होती है। जबकि यह महज अंधविश्वास है। कोई ग्रंथ इसे प्रमाणित नहीं करता है। तेंदुओं के शिकार का कारण भी लोगों की यही सोच है।

तेंदुए एवं बाघ के नाखून, बाल, दांत में अंतर समझ नहीं आता है और बस्तियों के नजदीक आने के कारण तेंदुए आसानी से फंस जाते हैं। इसलिए शिकारी तेंदुए का शिकार कर उसके नाखून, दांत, बाल बाघ का बताकर बेच देते हैं। इसकी पुष्टि प्रदेश के मुख्य वन्यप्राणी अभिरक्षक जेएस चौहान भी करते हैं। दीक्षित कहते हैं कि बाघ की तरह तेंदुए का भी महत्व है। इसलिए इसके संरक्षण पर बाघ परियोजना की तरह विशेष काम किया जाना चाहिए। इब बारे में मप्र के मुख्य वन्यप्राणी अभिरक्षक जसवीर सिंह चौहान का कहना है कि बाघ की तरह तेंदुओं की भी पूरी निगरानी की जाती है, फिर भी शिकार के मामले दुखद हैं। हम उनके संरक्षण को लेकर विशेष कदम उठाएंगे।