AIIMS में इतिहास: बच्चे की आंख से निकाला ट्यूमर
नई दिल्ली। देश में पहली बार एम्स को प्लक ब्रेची थेरेपी के माध्यम से रिटोनाब्लास्टोमा का इलाज करने में सफलता मिली है। एम्स के डॉक्टरों की टीम ने यूएसए के विशेषज्ञ की मदद से बच्चों की आंख का कैंसर यानी रिटोनाब्लास्टोमा का इलाज किया है। बच्चे की आंख के अंदर ट्यूमर को खत्म करने के लिए 12 घंटे तक रेडियो एक्टिव प्लक से रेडिएशन दिया।
इस तकनीक से बच्चे को आंख की रोशनी के साथ नई जिंदगी भी मिली है। दिल्ली के एम्स के आरपी सेंटर की डॉ।भावना चावला ने बताया कि दिल्ली का पांच साल से कम उम्र का बच्चा उनके पास जब पहुंचा था, तो एडवांस रिटोनाब्लास्टोमा (आंख का कैंसर) के चलते रोशनी जा चुकी थी और दूसरी आंख में भी ट्यूमर था।
पहली आंख को बचाया नहीं जा सका, इसलिए उसे निकाल दिया गया और फिर दूसरी आंख को बचाने की प्रक्रिया शुरू हो गई। दूसरी आंख को कीमोथेरेपी व लेजर ट्रीटमेंट देना शुरू किया। इसके तहत उसे प्लक ब्रेची थेरेपी देने की योजना बनाई। इसके लिए आंख के रेटिना के ऊपर छोटी सर्जरी करके रेडियो एक्टिव प्लक फिट किया। इस थेरेपी के माध्यम से रेडिएशन आंख के अंदर ट्यूमर पर दिया है।
इस थेरेपी में १२ से २४ घंटे या फिर दो से तीन दिन भी लग सकते थे। हालांकि इस मरीज को १८ अप्रैल को १२ घंटे तक रेडियो एक्टिव पदार्थ डाला और १९ अप्रैल को निकाला गया। इसके बाद स्थिति में सुधार हुआ है। हालांकि इस बीमारी में मरीज में सुधार काफी समय बाद पता चलते हैं, इसलिए हमें भी दो हफ्ते के बाद फॉलोअप के लिए बुलाना होगा।
डॉ.आरपी सेंटर के प्रमुख प्रो.अतुल कमार, प्रो. भावना चावला, प्रो. सुषमिता और प्रो. सुब्रह्मानी शामिल थीं, जबकि यूएसए के क्लीवलैंड आई क्लीनिक के डायरेक्टर प्रो.अरुण सिंह उन्हें विशेषज्ञ के रूप में इस रिटोनाब्लास्टोमा बीमारी का इलाज करने की तकनीक बता रहे थे।
डॉ.चावला का कहना है कि सेंटर में करीब ३०० बच्चे पहुंच रहे हैं, जिन्हें रिटोनाब्लास्टोमा होता है, जोकि एडवांस स्तर पर होता है। जागरूकता के अभाव में कई बच्चे आंखों की रोशनी गंवाने के साथ-साथ जिंदगी से भी हार जाते हैं। यदि बच्चे की आंख की पुतली के पास बिल्ली की आंख की चमक की तर्ज पर कुछ चमकता दिखे, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें, क्योंकि यह रिटोनाब्लास्टोमा का पहला लक्षण है। कई बार इस रिटोनाब्लास्टोमा के चलते ट्यूमर आंख के बाहर और कई मामलों में ब्रेन तक पहुंच जाता है। ऐसे मामलों में बच्चे को बचाना मुश्किल होता है।