इंजीनियरिंग की पढ़ाई मातृभाषा में होगी,AICTE की ऐतिहासिक पहल

इंजीनियरिंग की पढ़ाई
अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद इंजीनियरिंग की पढ़ाई (AICTE) ने एक बड़ी और ऐतिहासिक पहल की है।
अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (AICTE) ने एक बड़ी और ऐतिहासिक पहल की है। अब भारत में इंजीनियरिंग के डिप्लोमा और डिग्री पाठ्यक्रमों की किताबें 12 भारतीय भाषाओं में उपलब्ध कराई जाएंगी। इंजीनियरिंग की पढ़ाई,AICTE दिसंबर 2026 तक इस दिशा में तेजी से काम कर रहा है। इसका मुख्य उद्देश्य गांव और कस्बों से आने वाले छात्रों को उनकी मातृभाषा में तकनीकी शिक्षा देने की सुविधा प्रदान करना है, ताकि वे भी इस क्षेत्र में पीछे न रहें।
भारतीय भाषाओं में इंजीनियरिंग किताबों का अनुवाद
AICTE के चेयरमैन प्रो. टी.जी. सीताराम ने बताया कि अब तक पहले और दूसरे वर्ष के लिए लगभग 600 इंजीनियरिंग किताबों का अनुवाद पूरा हो चुका है। इंजीनियरिंग की पढ़ाई में ये किताबें प्रमुख भारतीय भाषाओं जैसे हिंदी, तमिल, तेलुगु, मराठी, बंगाली, पंजाबी, उर्दू, कन्नड़, मलयालम, ओड़िया, गुजराती और असमिया में छात्रों के लिए उपलब्ध कराई जा चुकी हैं। सिविल, मैकेनिकल, इलेक्ट्रिकल, इलेक्ट्रॉनिक्स और कंप्यूटर साइंस जैसे प्रमुख विषय इन किताबों में शामिल किए गए हैं।
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मातृभाषा में समझने में होगी आसानी
प्रो. सीताराम ने कहा कि इन किताबों को इस तरह से तैयार किया गया है कि छात्र अपनी मातृभाषा में कठिन इंजीनियरिंग कॉन्सेप्ट को आसानी से समझ सकेंगे। हर चैप्टर में उद्देश्य, परिणाम आधारित शिक्षण तकनीक और अभ्यास प्रश्न शामिल किए गए हैं, जिससे पढ़ाई अधिक व्यवस्थित और समझने योग्य हो सके।
AI का सहयोग,इंजीनियरिंग की पढ़ाई
AICTE ने इस काम को तेज़ी से करने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का सहारा लिया है। एक डीप लर्निंग मॉडल अब एक किताब का 80% तक सटीक अनुवाद केवल 10 मिनट में कर देता है, जिसे फिर विशेषज्ञ अंतिम रूप देते हैं।
छात्रों के लिए यह एक विकल्प होगा
AICTE ने स्पष्ट किया है कि यह सुविधा सभी छात्रों के लिए अनिवार्य नहीं होगी। यह खासकर उन छात्रों के लिए है, जो अंग्रेजी में पढ़ाई करने में सहज नहीं हैं, खासकर ग्रामीण इलाकों से आने वाले छात्रों के लिए यह एक बेहतरीन अवसर साबित हो सकता है।
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रोजगार की चुनौती
हालांकि, इंजीनियरिंग की पढ़ाई क्षेत्रीय भाषाओं में पढ़ाई करने वाले छात्रों को रोजगार के अवसरों में चुनौतियां आ सकती हैं, लेकिन प्रो. सीताराम का मानना है कि जैसे कनाडा और स्विट्ज़रलैंड में स्थानीय भाषाओं में उच्च शिक्षा संभव है, वैसे ही भारत में भी यह मॉडल सफल हो सकता है। इसके लिए सरकार और उद्योगों को मिलकर काम करना होगा।