कश्मीर हमेशा शेष भारत के लिए उम्मीद का एक प्रकाशस्तंभ रहा है: राष्ट्रपति कोविंद
नई दिल्ली । राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कश्मीर की युवा पीढ़ी से उनकी समृद्ध विरासत से सीखने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि उनके पास यह जानने की हर वजह है कि कश्मीर हमेशा शेष भारत के लिए उम्मीद का एक प्रकाशस्तंभ रहा है। पूरे भारत पर इसका आध्यात्मिक और सांस्कृतिक प्रभाव है। वे आज श्रीनगर में कश्मीर विश्वविद्यालय के 19वें वार्षिक दीक्षांत समारोह को संबोधित कर रहे थे। राष्ट्रपति ने कहा कि कश्मीर एक ऐसी जगह है जो विवरणों को खारिज करती है। कई कवियों ने इसे धरती पर स्वर्ग कहते हुए इसकी सुंदरता की व्याख्या करने की कोशिश की है, लेकिन यह शब्दों से परे है। प्रकृति की इस उदारता ने ही इस स्थान को विचारों का एक केंद्र भी बनाया है। दो सदी पहले बर्फ से ढके पहाड़ों से घिरी यह घाटी ऋषियों व संतों के लिए एक आदर्श जगह प्रदान करती थी। कश्मीर के योगदान का उल्लेख किए बिना भारतीय दर्शन का इतिहास लिखना असंभव है।
ऋग्वेद की सबसे पुरानी पांडुलिपियों में से एक कश्मीर में लिखी गई थी। दर्शन के समृद्ध होने के लिए यह सबसे प्रेरक क्षेत्र है। यहीं पर महान दार्शनिक अभिनवगुप्त ने सौंदर्यशास्त्र और ईश्वर की अनुभूति के तरीकों पर अपनी व्याख्याएं लिखीं। कश्मीर में हिंदू धर्म और बौद्ध धर्म का विकास हुआ, इसी तरह बाद की शताब्दियों में इस्लाम और सिख धर्म के यहां आने के बाद हुआ था। राष्ट्रपति ने कहा कि कश्मीर विभिन्न संस्कृतियों का मिलन स्थल भी रहा है। मध्यकालीन युग में लाल डेड (लल्लेश्वरी) ही थीं, जिन्होंने विभिन्न आध्यात्मिक परंपराओं को एक साथ लाने का मार्ग दिखाया। लल्लेश्वरी के कार्यों में हम देख सकते हैं कि कैसे कश्मीर खुद को सांप्रदायिक सद्भाव और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व का बेहतरीन ढांचा प्रदान करता है। यह यहां के जीवन के सभी पहलुओं में, लोक कलाओं व त्योहारों में, भोजन व पोशाक में भी प्रतिबिंबित होता है। इस स्थान की मूल प्रकृति हमेशा से समावेशी रही है। इस भूमि पर आने वाले लगभग सभी धर्मों ने कश्मीरियत की एक अनूठी विशेषता को अपनाया जिसने रूढ़िवाद को त्याग दिया और समुदायों के बीच सहिष्णुता व आपसी स्वीकृति को प्रोत्साहित किया।