मानसून सत्र: हंगामें की बलि चढ़ गए जनता के 2640 करोड़ रु, हर मिनट ढाई लाख रु होते हैं खर्च
नई दिल्ली। लोकतंत्र के मंदिर कहलाने वाली संसद और जनता के प्रति माननीय कितने गंभीर है यह इस बात से पता चलता है कि इस मानसून सत्र में लोकसभा और राज्यसभा की कार्यवाहियों से जनता के 26.40 अरब रुपये पानी में चले गए। इसमें कुछ और पैसे जोड़ने पर तो अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस तीन नए संसद भवन बन जाते। सरकार ने इसी सत्र में राज्यसभा को जानकारी दी है कि नए संसद भवन के निर्माण पर करीब 971 करोड़ रुपये का खर्च आ रहा है।
अनुमानों के मुताबिक, संसद सत्र चलने पर हर मिनट 2.5 लाख रुपये खर्च होते हैं। पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च के आंकड़े बताते हैं कि मॉनसून सत्र में संसद की उत्पादकता बीते दो दशकों में चौथी सबसे कम रही है। संसद के निचले सदन लोकसभा की उत्पादकता सिर्फ 21 प्रतिशत प्रतिशत रही जबकि उच्च सदन राज्यसभा की उत्पादकता 29 प्रतिशत रही।
लोकसभा को 19 दिनों तक प्रति दिन छह घंटे के हिसाब से चलना था। हालांकि, पेगासस जासूसी कांड की जांच और नए कृषि कानूनों की वापसी जैसी मांगों को लेकर हंगामे से सदन की कार्यवाही बाधित होती रही। इस कारण लोकसभा में कुल मिलाकर 21 घंटे ही कामकाज हो पाया। वहीं, राज्यसभा में 29 घंटे कामकाज हुआ।
पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च के मुताबिक, मॉनसून सत्र में लोकसभा और राज्यसभा को 19 दिनों में क्रमशः 114 और 112 घंटे काम करने थे। ऐसे में 2016 के शीतकालीन सत्र के बाद लोकसभा में इस बार सबसे कम काम हुआ। 2016 के शीतकालीन सत्र में लोकसभा कार्यवाही शिड्यूल टाइम के सिर्फ 15 प्रतिशत वक्त तक ही चल पाई। पिछले 10 वर्षों के पांच सत्रों में राज्यसभा अपने निर्धारित समय के 25 प्रतिशत से भी कम काम कर पाई। इस सत्र में लोकसभा ने किसी गैर-विधायी मुद्दे पर चर्चा नहीं की।
अब अगर मॉनसून सत्र में लोकसभा के लिए निर्धारित 114 और राज्यसभा के लिए निर्धारित 112 घंटों को जोड़ दें तो संसद में दोनों सदनों को मिलाकर कुल 226 घंटे कामकाज होना था, लेकिन हुआ सिर्फ 21 प्लस 29 यानी सिर्फ 50 घंटे। विभिन्न अनुमानों के अनुसार संसद की हर मिनट की कार्यवाही पर करीब ढाई लाख रुपये खर्च होते हैं। इस तरह 226 घंटे यानी कुल 13,560 मिनट की कार्यवाही पर करीब 33.90 अरब रुपये खर्च हुए।
अब अगर दोनों सदनों में हुए कामकाज के घंटों को जोड़ें तो यह कुल 50 घंटे ही होते हैं। यानी, इन 50 घंटों यानी 3,000 मिनटों पर खर्च हुए 7.50 अरब रुपये का सार्थक उपयोग हुआ। अब चूंकि 226 में से सिर्फ 50 घंटे ही कामकाज हो पाए, इसका मतलब है कि 176 घंटे यानी 10,560 मिनट बेकार गए।
बेकार गए इन मिनटों पर 26.40 अरब रुपये खर्च हुए। वैसे भी कुल खर्च हुए 33.90 अरब रुपयों में सदुपयोग हुए 7.50 अरब रुपयों को निकाल दें तो यह रकम 26.40 अरब रुपये ही होती है। यानी, कहा जा सकता है कि संसद के मॉनसून सत्र में आम जनता की गाढ़ी कमाई के 26.40 अरब रुपये यूं ही बर्बाद हो गए। पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च के मुताबिक, काम-काज के पैमाने पर पिछले दो दशक में लोकसभा का यह तीसरा जबकि राज्यसभा का 8वां सबसे खराब प्रदर्शन रहा।
आंकड़े बताते हैं कि पिछले दो दशकों में दोनों सदनों का सबसे खराब प्रदर्शन वर्ष 2010 के शीत सत्र के दौरान रहा था। तब बीजेपी विपक्ष में थी। उसने सीएजी की रिपोर्ट के आलोक में 2जी स्पेक्ट्रम लाइसेंस आवंटन की संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) से जांच की मांग को लेकर दोनों सदनों की कार्यवाही बाधित की थी। इस कारण राज्यसभा में सिर्फ 2 प्रतिशत जबकि लोकसभा में 6 प्रतिशत कामकाज ही हो पाया था।
सरकार ने इसी सत्र में राज्यसभा में बताया कि नए संसद के निर्माण में उसे 971 करोड़ रुपये और सेंट्रल विस्टा एवेन्यू पर 608 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है। यानी, कुल मिलाकर सेंट्रल विस्टा प्रॉजेक्ट पर 1,579 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है। इसमें अब तक कुल 301 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं। इनमें 238 करोड़ रुपये नए संसद भवन के निर्माण पर जबकि 63 करोड़ रुपये सेंट्रल विस्टा एवेन्यू पर खर्च हुए हैं।
कर्नाटक से जीसी चंद्रशेखर और मध्य प्रदेश से राज्यसभा सांसद राजमणि पटेल के सवाल पर आवास एवं शहरी मामलों के राज्य मंत्री कौशल किशोर ने बताया, सेंट्रल विस्टा रीडेवलपमेंट/डेवलेपमेंट मास्टर प्लान के तहत सिर्फ दो प्रॉजेक्ट- नए संसद भवन का निर्माण और सेंट्रल विस्टा एवेन्यू का पुनर्निर्माण पर काम हो रहा है। वित्त वर्ष 2021-22 में इन दोनों प्रॉजेक्ट पर कुल 1,289 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है।