श्रीकृष्ण जन्म भूमि से संबंधित जानकारी
सन् 1815, में इस स्थल की नीलामी की जाती है, जिसका क्षेत्रफल 13.37 एकड होता है, और इस जमीन को काशी के राजा पतनीमल रुपए 1140 अदा कर खरीदते हैं।*ईदगाह की जमीन को भी इसी भूमि का हिस्सा माना जाता है।ईदगाह का चौकीदार अहमदशाह के द्वारा इस जमीन के पश्चिम हिस्से पर एक सड़क निर्माण किया जाता है, जिसको न्यायालय में चुनौती दी जाती है, और न्यायालय के आदेश पर काम बंद करवा दिया जाता है, क्योंकि ईदगाह की जमीन काशी नरेश की ही होती है।
1920 ईस्वी में एक और मुकद्दमा होता है, जिसमें स्पष्ट आदेश दिया जाता है कि, ईदगाह की जमीन काशी नरेश की है, और ईदगाह का जमीन पर मालिकाना हक नहीं है।
1928 में इदगाह का मरम्मती करण का काम शुरू किया जाता है, और पुनः कोर्ट के आदेश से यह काम रुकवा दिया जाता है, क्योंकि ईदगाह की जमीन पर अधिकार काशी नरेश का होता है।
1944 में यह 13.37 एकड़ जमीन बिरला जी, काशी नरेश से खरीद लेते है, और इसको श्री कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट को सौंप देते हैं। जिस जमीन का कुल विक्रय मूल्य 13400 रुपए होता है।
1945 में इस जमीन पर फिर से दावा किया जाता है, जिसका फैसला 1960 में आता है, कि जमीन का मालिकाना हक *_श्री कृष्ण जन्मभूमि न्यास_ का है, क्योंकि राजस्व विभाग के एक खाता बही में इसकी कर अदायगी, सब कुछ न्यास के द्वारा किया जाता है।*जब जमीन *श्रीकृष्ण जन्मभूमि न्यास* की है, और अनाधिकृत कब्जा ईदगाह के रूप में हुआ है, तो सुप्रीम कोर्ट का आदेश भी है कि, कब्जा धारी जमीन का मालिक नहीं हो सकता है, तत्काल प्रभाव से इस जमीन से ईदगाह को हटाया जाए, और सारी जमीन को *श्रीकृष्ण जन्मभूमि न्यास* को सौंप दिया जाना चाहिए।
पूर्व में 6 न्यायिक फैसले भी इसी पक्ष में हुए हैं।आप सब से आग्रह है कि इस जानकारी में और जो भी जोड़ सकते हैं, जरूर जोड़ें।*अबकी बार, कन्हैया जी के द्वार**कान्हा जी हम आएंगे**माखनभोग लगाएंगे।* जय श्री कृष्ण?