पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी का 114th जन्मतिथि

*जीवन *परिचय* पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी का जन्म 25 सितंबर 1916 को श्री भगवती प्रसाद उपाध्याय जी के यहाँ नगला चंद्रभान,फरह,जनपद मथुरा में हुआ था पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के दादाजी पंडित हरिराम उपाध्याय जी एक सुप्रसिद्ध ज्योतिषी थे जब उनकी मृत्यु हुई थी तब आगरा और मथुरा में हड़ताल मनाई गई थी पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के पिता जी का स्वर्गवास जब पंडित दीनदयाल जी 3 वर्ष के थे तब हो गया था,इसलिए वह अपनी माता जी के साथ अपने नाना जी के यहाँ चले गए और उन्हीं के साथ रहने लगे उनके नाना श्री चुनीलाल शुक्ल जयपुर अजमेर लाइन पर स्थित एक धनकिया गांव है वहां के स्टेशन मास्टर थे किंतु दीनदयाल जी के 8 वर्ष होने के पहले ही उनकी माता जी की भी मृत्यु हो गई इस प्रकार से एक छोटा सा बालक अपने माता-पिता के स्नेह से वंचित रह गया।इसके बाद उनका लालन-पालन उनके मामा श्री राधारमण शुक्ला जी ने किया जो एक फ्रण्टियर मेल में रेलवे गार्ड के पद पर पदस्थ थे बचपन से दीनदयाल उपाध्याय जी एक विशिष्ट बालक थे उनकी बुद्धि कुशाग्र और उनमें साहस अपार था इसलिए उन्होंने कल्याण हाई स्कूल सीकर से मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की और अजमेर बोर्ड की परीक्षा में प्रथम श्रेणी में सर्वप्रथम स्थान उन्होंने प्राप्त किया उन्हें बोर्ड और स्कूल दोनों की ओर से स्वर्ण पदक प्रदान किया गया दो वर्ष बाद वह बिरला कॉलेज पिलानी से इंटरमीडिएट परीक्षा में भी प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुए इस बार भी वह प्रथम रहे और इस बार भी उन्हें दो स्वर्ण पदक मिले एक बोर्ड की ओर से और दूसरा कॉलेज की ओर से उन्हें सनातन धर्म कॉलेज कानपुर से गणित विषय लेकर के प्रथम श्रेणी में बीए की परीक्षा उत्तीर्ण की। पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी गणित विषय को लेकर एम.ए .करने के लिए आगरा के सेंटजॉन्स कॉलेज में दाखिल हुए परंतु परिस्थिति वश बीच में ही छोड़कर उन्हें प्रयाग जाना पड़ा और उन्होंने वहाँ से एलटी किया अपने पूरे कॉलेज जीवन में उन्हें मासिक छात्रवृत्ति प्राप्त होती रही।

सन 1937 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का उत्तर प्रदेश में कार्य प्रारंभ हो रहा था वो 1937 में संघ के स्वयंसेवक बने। इस प्रकार दीनदयाल जी वहां संघ की नींव के स्वयंसेवकों में से एक स्वयंसेवक बने । सर्वप्रथम बने स्वयंसेवकों में एक पंडित जी इस प्रकार भारत के सबसे विस्तृत राज्य में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को समर्थ बनाने के कार्य में जुट गए। सन 1942 में उत्तर प्रदेश के लखीमपुर जिला के जिला प्रचारक के रूप में कार्य आरंभ कर 5 वर्ष के अंदर ही पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी सह- प्रांत प्रचारक बन गए इस प्रकार से श्री भाउराव देवरस जी के बाद उनका ही स्थान था वे 1951 तक इसी पद पर कार्य करते रहे उसके बाद जब 1951 में भारतीय जनसंघ की स्थापना हुई तब उनको और उनकी सेवाएं उसे अर्पित कर दी गईं और वो उत्तर प्रदेश के भारतीय जनसंघ के मंत्री बने।

1952 के भारतीय जनसंघ के कानपुर अधिवेशन में डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी को भारतीय जनसंघ का महामंत्री नियुक्त किया।डॉक्टर मुखर्जी ने उनकी संगठन क्षमता से प्रभावित होकर के कानपुर अधिवेशन में कहा था कि यदि मेरे पास दो दीनदयाल जी हों तो मैं भारत का राजनीतिक रुप बदल कर रख दूंगा। दुर्भाग्यवश जून 1953 में डॉक्टर मुखर्जी के देहावसान के बाद भारत के राजनीतिक रूप को बदल देने का दायित्व पंडित दीनदयाल जी के कंधों पर आ पड़ा उन्होंने इस कार्य को इतने चुपचाप और विशेष ढंग से पूरा किया जब 1967 में आम चुनाव के परिणाम सामने आने लगे तब भी देश आश्चर्यचकित रह गया उन्होंने इसे द्वितीय क्रांति की संज्ञा दी भारत की स्वतंत्रता पहली क्रांति थी राजनीतिक दलों में भारतीय जनसंघ दूसरे क्रमांक पर पहुंच गया अब यह स्पष्ट हो चला था कि भारतीय जनसंघ को प्रथम क्रमांक में पहुंचने में अब कुछ ही वर्ष का समय लगेगा यद्यपि पंडित दीनदयाल जी एक महान नेता बन गए थे परंतु वे अपने कपड़े स्वयं साफ किया करते थे स्वभाव से इतने सरल थे कि जब तक बनियान की चिंदी चिंदी ना उड़ जाती तब तक वह नई बनियान बनाने के लिए तैयार नहीं होते थे वे स्वदेशी के बारे में शोर नहीं मचाते थे परंतु वे कभी भी विदेशी वस्तुओं को खरीदते नहीं थे।पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी ने लखनऊ से प्रकाशित पांचजन्य साप्ताहिक और स्वदेश दैनिक के संपादक के रूप में भी कार्य किया। भारतीय जनसंघ के अस्तित्व में आने के बाद और अपनी मृत्यु से थोड़े दिन पूर्व तक कई अध्यक्ष आए और गए परंतु महामंत्री पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी ही रहे पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी के शब्दों में वे स्वयं तो संसद सदस्य नहीं थे परंतु वे जनसंघ के सभी संसद सदस्यों के निर्माता थे और इतने पर भी कभी किसी ने उनको अपने बारे में अपने प्रत्येक प्रयत्नों के बारे में कुछ भी कहते नहीं सुना “मैं ” शब्द के प्रयोग को वो निषिद्ध मानते थे और श्री यज्ञदत्त शर्मा जी,जो पूर्व जन संघ अध्यक्ष रहे उन्होंने कहा उनका जीवन पवित्र त्रिवेणी था जिसमें तमस, संगम की सरस्वती के समान था जबकि रजस और सत्व यमुना और गंगा के समान गहरे और विस्तृत रूप में विद्यमान थे। कॉलेज के समय पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी का मुख्य विषय गणित था परंतु संस्कृत के प्रति उनका सर्वाधिक प्रेम था किंतु राजनीति में प्रवेश करने के साथ ही उन्होंने अर्थशास्त्र के महत्व को समझा उन्होंने इस विषय का इतना गहन अध्ययन किया कि किसी भी अर्थशास्त्री की तुलना में भी इस विषय के ज्ञान में महारत में पीछे नहीं रहे। संभवतः किसी भी दूसरे राजनीतिशास्त्रीय अर्थशास्त्री की अपेक्षा अधिक ध्यान से विभिन्न योजनाओं का अध्ययन किया करते थे भारतीय अर्थ चिंतन में उनका सबसे मौलिक योगदान है “एकात्म मानववाद” जिसमें आज की सामाजिक आर्थिक समस्याओं के साथ चार पुरुषार्थ -धर्म ,अर्थ ,काम मोक्ष के संबंध पर प्रकाश डाला गया है।

पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी नवम्बर 1967 में भारतीय जन संघ के अध्यक्ष बनाए गए और 11 फरवरी 1968 को रहस्य पूर्ण परिस्थितियों में उनकी हत्या होने से केवल कुछ सप्ताह पूर्व ही पंडित दीनदयाल जी ने जनसंघ के ऐतिहासिक कालीकट अधिवेशन की अध्यक्षता की इस अधिवेशन के बारे में मत व्यक्त करते हुए भारत के सबसे अधिक प्रसार संख्या वाले समाचार पत्र मातृभूमि ने लिखा था कि 3 दिन तक ऐसा प्रतीत हुआ मानो गंगा ने अपना मार्ग बदल दिया है और उसने केरल होकर बहना आरंभ कर दिया है भारतीय जनसंघ दक्षिण में एक भारी धमाके के साथ पहुंचा था उस महान समय में ही उनकी हत्या कर दी गई जैसा कि पहले स्वामी दयानंद स्वामी श्रद्धानंद और महात्मा गांधी की हत्या हुई थी भारत के तत्कालीन गृहमंत्री श्री चौहान ने उनको एक आदर्श भारतीय कह कर श्रद्धांजलि दी थी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तत्कालीन सरकार्यवाह और बादमें पूज्य सरसंघचालक रहे श्री बाला साहब देवरस जी ने उन्हें एक आदर्श स्वयंसेवक बताया और डॉक्टर हेडगेवार के साथ उनकी तुलना की थी। श्रीनाथ पई ने उनको गांधी तिलक और सुभाष की राष्ट्रीय परंपरा का पुरुष कहा था श्री हीरेन मुखर्जी ने उन्हें अजातशत्रु की संज्ञा दी थी और आचार्य कृपलानी ने देवीय गुण संपन्न व्यक्ति के विशेषण के साथ उनका वर्णन किया दधीचि की भांति उन्होंने देश की सेवा में अपनी हड्डियां लगा दी ऐसे थे पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी देश दीर्घकाल तक उनके अभाव को अनुभव करता रहेगा और उनका सदा स्मरण करता रहेगा। आज की भारतीय जनता पार्टी और वर्तमान सरकार ऐसे ही महापुरुष की नींव पर आदर्शों पर कार्य कर रही है हम सब कार्यकर्ताओं के प्रेरणा पुंज महापुरुष पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी को कोटि-कोटि नमन।